अब भारतीय स्वयं सबल व संगठित होगा !
महर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरण विज्ञानी थे | इनका जन्म उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। कई इतिहासकार इन्हें महर्षि पिंगल का बड़ा भाई मानते है | इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है।
इनके द्वारा भाषा के सन्दर्भ में किये गये महत्त्व पूर्ण कार्य 19वी सदी में प्रकाश में आने लगे |
19वी सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी Franz Bopp (14 सितम्बर 1791 – 23 अक्टूबर 1867) ने श्री पाणिनि के कार्यो पर गौर फ़रमाया । उन्हें पाणिनि के लिखे हुए ग्रंथों में तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के नए मार्ग मिले | http://www.vedicbharat.com/
इसके बाद कई संस्कृत के विदेशी चहेतों ने उनके कार्यो में रूचि दिखाई और गहन अध्ययन किया जैसे: Ferdinand de Saussure (1857-1913), Leonard Bloomfield (1887 – 1949) तथा एक हाल ही के भाषा विज्ञानी Frits Staal (1930 – 2012).
तथा इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए 19वि सदी के एक जर्मन विज्ञानी Friedrich Ludwig Gottlob Frege (8 नवम्बर 1848 – 26 जुलाई 1925 ) ने इस क्षेत्र में कई कार्य किये और इन्हें आधुनिक जगत का प्रथम लॉजिक विज्ञानी कहा जाने लगा | साभार: वैदिक भारत
लेकिन आज तक हमने क्या किया ?
केवल गाल बजाते रहे कि हमारे ऋषि-मुनि ऐसे थे या वैसे थे…आर्यभट ने ये दिया और पाणिनि ने ये दिया… लेकिन हमने क्या किया ?
क्यों नहीं हमने उनके ज्ञान का लाभ उठाया और स्वयं और राष्ट्र को सशक्त होने में कोई योगदान दिया ? क्यों नहीं हमने उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास किया ? क्यों नहीं उनके शोधों को और गहनतम स्तर में ले जाने का प्रयास किया ? आज भी क्या कर रहें हैं ? आज भी क्यों प्रतीक्षा कर रहें हैं कि नासा संस्कृत को लेकर काम करे और हम हाथ-पर हाथ धरे बैठें रहें ? क्या इसलिए कि फिर हम गाल बजायेंगे कि संस्कृत के हम प्रकांड विद्वान् हैं… संस्कृत से ही अमेरिका आगे बढ़ा ?
आज नासा के वैज्ञानिक मिशन संस्कृत के नाम से संस्कृत को लेकर प्रयोग कर रहें हैं और यहाँ तक की भारतीय विद्वानों के असहयोग के बाद उन्होंने अपने बच्चों को संस्कृत में पारंगत करना शुरू कर दिया है | क्योंकि उन्हें अपने राष्ट्र से प्रेम है और इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं | यह देखिये:
NASA’s Mission Sanskrit.
On visit to Agra, Aurobindo Foundation (Indian Culture) Puducherry Director Sampadananda Mishra told Dainik Jagran about the prospects of Sanskrit. Mishra said, “In 1985, NASA scientist Rick Briggs had invited 1,000 Sanskrit scholars from India for working at NASA. But scholars refused to allow the language to be put to foreign use.”
According to Rick Briggs, Sanskrit is such a language in which a message can be sent by the computer in the least number of words.
After the refusal of Indian experts to offer any help in understanding the scientific concept of the language, American kids were imparted Sanskrit lessons since their childhood.
The NASA website also confirms its Mission Sanskrit and describes it as the best language for computers. The website clearly mentions that NASA has spent a large sum of time and money on the project during the last two decades.
लोगों ने मंदिरों में दान दिए ताकि किसी के काम आये, किसी गरीब का भला हो, देश में सुख-शान्ति रहे, देश और विकसित हो…. लेकिन वे दान तिजोरियों में दफ़न हो गए या राजनीतिज्ञों और धर्म गुरुओं के अय्याशी और आडम्बरों में उडाये जा रहें हैं | किसी भी समृद्ध प्रतिष्ठान या मंदिर ने नहीं कोशिश की कि हम स्वयं अपने ही देश में संस्कृत भाषा पर प्रयोग करें और चूँकि हमारे पास संस्कृत के विद्वानों की कमी नहीं है हम अमेरिका से पहले ही सफल हो सकते हैं | क्योंकि हमारे पास केवल भाषा विज्ञानी ही नहीं, कंप्यूटर सॉफ्टवेर के असाधारण क्षमता वाले प्रोग्रामर और डेवलपर भी हैं | धन की कमी नहीं है मंदिरों और धार्मिक संस्थानों में, न ही कमी है देश पर गर्व करने और श्रमदान करने वाले युवाओं की | लेकिन किसी की आवाज़ नहीं निकलती | धन देश के लिए खर्च करते हुए जान निकलती है इन पाखंडी धर्म के ठेकेदारों की | देशवासियों को भेड़ बकरी समझ रखा है इन लोगों ने और देश को दूध देने वाली गाय…जितना दुह सकें दुह लो और फिर विदेश जाकर अय्याशी करों उन पैसों से धर्म के नाम पर |
मेरे पास आज धन नहीं है और न ही मैं कोई विद्वान् हूँ, लेकिन पितृ ऋण और देव ऋण से उपर मानता हूँ मातृभूमि के ऋण को | पिता और देव तभी हैं जब जन्मभूमि है | जिसने हमें आपने आँचल में पाला, खिलाया और हमें समर्थ व सबल बनाया | यदि आप में से कोई देश के लिए कुछ करना चाहता है तो मुझसे संपर्क करें | या आप http://www.BVBJA.com संपर्क करें | यदि आप प्रति माह १०० रूपए भी सहयोग राशि का प्रबंध कर पायें तो संस्था को शोषित वर्गों के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रबंध करने में आसानी हो जायेगी जो कि अभी निजी आय से की जा रही है | और यदि आप संगठन की सहायता न भी करना चाहें तो भी आपस में ही आप लोग स्वयं ही प्रयास करें तो अमेरिका को टक्कर देने के लिए हम भारतीयों को इन स्वार्थी पंडितों, संयासिओं, संत-महंतों, राजनैतिक पार्टियों या धार्मिक संस्थानों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी | आप स्वयं ही संगठित हों राष्ट्र के लिए, न कि किसी पार्टी या नेता के लिए | स्वतंत्रता से पहले और आज तक के अनुभवों में हम जान चुके हैं कि ये राजनैतिक पार्टियाँ और उनके समर्थक राष्ट्र के लिए नहीं नेता के लिए काम करती हैं |
हमें इनसे सहयोग की अपेक्षा कभी भी नहीं रही और भविष्य में भी नहीं रहेगी |हम अपनी शर्त (किसी धर्म, वर्ण व जाति से सर्वोपरि राष्ट्र व उसका विकास) पर ही कार्य करेंगे और किसी भी राजनैतिक या धार्मिक संगठन से सहयोग भी इसी शर्त पर लेंगे कि हम किसी राजनैतिक पार्टी या नेता के प्रचार-प्रसार में भाग नहीं लेंगे |
बहुत हो गया विदेशियों के बनाए उत्पाद खरीदते हुए…. अब भारतीय स्वयं सबल व संगठित होगा ! किसी राजनैतिक पार्टी के विकास के लिए नहीं, स्वयं व राष्ट्र के समृद्धि व विकास के लिए ! -विशुद्ध चैतन्य
Related articles
- If the Japanese can learn Sanskrit, why can’t we? (dnaindia.com)
- http://www.ibtl.in/news/international/1815/nasa-to-echo-sanskrit-in-space-website-confirms-its-mission-sanskrit/
http://post.jagran.com/NASA-to-use-Sanskrit-as-computer-language-1332758613
http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl
हाल ही की टिप्पणियाँ