Don’t aim for success if you want it; just do what you love and believe in, and it will come naturally. यदि आप सफलता चाहते हैं तो इसे अपना लक्ष्य ना बनाइये, सिर्फ वो करिए जो करना आपको अच्छा लगता है और जिसमे आपको विश्वास है, और खुद-बखुद आपको सफलता मिलेगी. David Frost डेविड फ्रोस्ट

Archive for अगस्त, 2013

अब भारतीय स्वयं सबल व संगठित होगा !

देशमहर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े  व्याकरण विज्ञानी थे | इनका जन्म उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। कई इतिहासकार इन्हें महर्षि पिंगल का बड़ा भाई मानते है | इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है।
इनके द्वारा भाषा के सन्दर्भ में किये गये महत्त्व पूर्ण कार्य 19वी सदी में प्रकाश में आने लगे |
19वी सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी Franz Bopp (14 सितम्बर 1791 – 23 अक्टूबर 1867) ने श्री पाणिनि के कार्यो पर गौर फ़रमाया । उन्हें पाणिनि के लिखे हुए ग्रंथों में तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के नए मार्ग मिले  |  http://www.vedicbharat.com/
इसके बाद कई संस्कृत के विदेशी चहेतों  ने उनके कार्यो में रूचि दिखाई और गहन अध्ययन किया जैसे: Ferdinand de Saussure (1857-1913), Leonard Bloomfield (1887 – 1949) तथा एक हाल ही के भाषा विज्ञानी Frits Staal (1930 – 2012).

तथा इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए 19वि सदी के एक जर्मन विज्ञानी Friedrich Ludwig Gottlob Frege      (8 नवम्बर 1848 – 26 जुलाई 1925 ) ने इस क्षेत्र में कई कार्य किये और इन्हें  आधुनिक जगत का प्रथम लॉजिक विज्ञानी कहा जाने लगा | साभार: वैदिक भारत 

लेकिन आज तक हमने क्या किया ?

केवल गाल बजाते रहे कि हमारे ऋषि-मुनि ऐसे थे या वैसे थे…आर्यभट ने ये दिया और पाणिनि ने ये दिया… लेकिन हमने क्या किया ?

क्यों नहीं हमने उनके ज्ञान का लाभ उठाया और स्वयं और राष्ट्र को सशक्त होने में कोई योगदान दिया ? क्यों नहीं हमने उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास किया ? क्यों नहीं उनके शोधों को और गहनतम स्तर में ले जाने का प्रयास किया ? आज भी क्या कर रहें हैं ? आज भी क्यों प्रतीक्षा कर रहें हैं कि नासा संस्कृत को लेकर काम करे और हम हाथ-पर हाथ धरे बैठें रहें ? क्या इसलिए कि फिर हम गाल बजायेंगे कि संस्कृत के हम प्रकांड विद्वान् हैं… संस्कृत से ही अमेरिका आगे बढ़ा ?

आज नासा के वैज्ञानिक मिशन संस्कृत के नाम से संस्कृत को लेकर प्रयोग कर रहें हैं और यहाँ तक की भारतीय विद्वानों के असहयोग के बाद उन्होंने अपने बच्चों को संस्कृत में पारंगत करना शुरू कर दिया है | क्योंकि उन्हें अपने राष्ट्र से प्रेम है और इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं | यह देखिये:

NASA’s Mission Sanskrit.
On visit to Agra, Aurobindo Foundation (Indian Culture) Puducherry Director Sampadananda Mishra told Dainik Jagran about the prospects of Sanskrit. Mishra said, “In 1985, NASA scientist Rick Briggs had invited 1,000 Sanskrit scholars from India for working at NASA. But scholars refused to allow the language to be put to foreign use.”

According to Rick Briggs, Sanskrit is such a language in which a message can be sent by the computer in the least number of words.

After the refusal of Indian experts to offer any help in understanding the scientific concept of the language, American kids were imparted Sanskrit lessons since their childhood.

The NASA website also confirms its Mission Sanskrit and describes it as the best language for computers. The website clearly mentions that NASA has spent a large sum of time and money on the project during the last two decades.

लोगों ने मंदिरों में दान दिए ताकि किसी के काम आये, किसी गरीब का भला हो, देश में सुख-शान्ति रहे, देश और विकसित हो…. लेकिन वे दान तिजोरियों में दफ़न हो गए या राजनीतिज्ञों और धर्म गुरुओं के अय्याशी और आडम्बरों में उडाये जा रहें हैं | किसी भी समृद्ध प्रतिष्ठान या मंदिर ने नहीं कोशिश की कि हम स्वयं अपने ही देश में संस्कृत भाषा पर प्रयोग करें और चूँकि हमारे पास संस्कृत के विद्वानों की कमी नहीं है हम अमेरिका से पहले ही सफल हो सकते हैं | क्योंकि हमारे पास केवल भाषा विज्ञानी ही नहीं, कंप्यूटर सॉफ्टवेर के असाधारण क्षमता वाले प्रोग्रामर और डेवलपर भी हैं | धन की कमी नहीं है मंदिरों और धार्मिक संस्थानों में, न ही कमी है देश पर गर्व करने और श्रमदान करने वाले युवाओं की | लेकिन किसी की आवाज़ नहीं निकलती | धन देश के लिए खर्च करते हुए जान निकलती है इन पाखंडी धर्म के ठेकेदारों की | देशवासियों को भेड़ बकरी समझ रखा है इन लोगों ने और देश को दूध देने वाली गाय…जितना दुह सकें दुह लो और फिर विदेश जाकर अय्याशी करों उन पैसों से धर्म के नाम पर |

मेरे पास आज धन नहीं है और न ही मैं कोई विद्वान् हूँ, लेकिन पितृ ऋण और देव ऋण से उपर मानता हूँ मातृभूमि के ऋण को | पिता और देव तभी हैं जब जन्मभूमि है | जिसने हमें आपने आँचल में पाला, खिलाया और हमें समर्थ व सबल बनाया | यदि आप में से कोई देश के लिए कुछ करना चाहता है तो मुझसे संपर्क करें | या आप http://www.BVBJA.com संपर्क करें | यदि आप प्रति माह १०० रूपए भी सहयोग राशि का प्रबंध कर पायें तो संस्था को शोषित वर्गों के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रबंध करने में आसानी हो जायेगी जो कि अभी निजी आय से की जा रही है | और यदि आप संगठन की सहायता न भी करना चाहें तो भी आपस में ही आप लोग स्वयं ही प्रयास करें तो अमेरिका को टक्कर देने के लिए हम भारतीयों को  इन स्वार्थी पंडितों, संयासिओं, संत-महंतों, राजनैतिक पार्टियों या धार्मिक संस्थानों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी | आप स्वयं ही संगठित हों राष्ट्र के लिए, न कि किसी पार्टी या नेता के लिए | स्वतंत्रता से पहले और आज तक के अनुभवों में हम जान चुके हैं कि ये राजनैतिक पार्टियाँ और उनके समर्थक राष्ट्र के लिए नहीं नेता के लिए काम करती हैं |

हमें इनसे सहयोग की अपेक्षा कभी भी नहीं रही और भविष्य में भी नहीं रहेगी |हम अपनी शर्त (किसी धर्म, वर्ण व जाति से सर्वोपरि राष्ट्र व उसका विकास) पर ही कार्य करेंगे और किसी भी राजनैतिक या धार्मिक संगठन से सहयोग भी इसी शर्त पर लेंगे कि हम किसी राजनैतिक पार्टी या नेता के प्रचार-प्रसार में भाग नहीं लेंगे |

बहुत हो गया विदेशियों के बनाए उत्पाद खरीदते हुए…. अब भारतीय स्वयं सबल व संगठित होगा !  किसी राजनैतिक पार्टी के विकास के लिए नहीं, स्वयं व राष्ट्र के समृद्धि व विकास के लिए ! -विशुद्ध चैतन्य

 

नेता का आन्दोलन या आन्दोलन का नेता ?

कोई भी संगठन, अभियान या आन्दोलन यदि व्यक्ति केन्द्रित हो जाता है तो वह असफल हो जाता है | आप कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आन्दोलन गांधी पर केन्द्रित था, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता | आन्दोलन स्वराष्ट्र पर केन्द्रित था और लोगों ने उस आन्दोलन की कमान सौंपी थी गांधी जी को | क्योंकि तब एक जनाक्रोश था | क्योंकि तब लोगों की सहन शक्ति जवाब दे चुकी थी | एक चिंगारी थी जो ज्वाला बन गई थी…लेकिन उन्होंने क्या किया ? अनशन और किसी एक धर्म का पक्ष लेकर भेद-भाव !

आन्दोलन जैसे ही व्यक्ति पर केन्द्रित हुआ शहीदों को भुला दिया गया | भाइयों को लड़ा दिया गया | विदेशियों ने एक बार में जितने भारतीयों की हत्या नहीं की, उससे ज्यादा हत्याएँ अपने ही नेताओं के इशारे पर अपनों ने अपनों की कर दी | नेताओं ने उस ज्वाला से अपनी रोटियाँ ही सेंकी न कि किसी का भला किया | नेताओं ने ही स्वतंत्रता आन्दोलन में भेद-भाव मिटाकर एक हुए देशवासियों को बांटा | नेताओं ने ही अशोक और चन्द्रगुप्त जैसे महान पुरुषों द्वारा संगठित किये एक महान राष्ट्र को खंडित कर दिया | आज भी यही चल रहा है | आज एक महान राष्ट्र खण्डों (उत्तराखंड, झारखण्ड…) में बंट गया | क्यों ? क्योंकि राष्ट्र से ज्यादा व्यक्ति महान हो गया | आज भी जगह जगह हो रहे धर्म और जाति के नाम पर हो रहे दंगे और मार काट यही सिद्ध करते हैं कि राष्ट्र और नागरिक महत्वपूर्ण नहीं है केवल नेता महत्वपूर्ण है जिनके इशारे पर लोग अपनों के ही जान के दुश्मन बने हुए हैं |

एक विश्वास जगा था अन्ना आन्दोलन में | देश फिर एक जुट हुआ, लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों ने उस आन्दोलन को निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना चाहा और आन्दोलन ध्वस्त हो गया | क्योंकि आन्दोलन अब राष्ट्रीय न हो कर व्यक्ति और पार्टी पर केन्द्रित हो गई थी |

किसी भी राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नेता ही दिशा देता है लेकिन यदि नेता राष्ट्र से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है तो आन्दोलन फिर आन्दोलन नहीं रह जाता | आन्दोलनकारी नेताओं के चमचे और प्रचारक बन जाते हैं | आम जनता उस आन्दोलन से अपने को अलग कर लेती है | इसलिए चिंता यह मत कीजिये कि नेता कौन है ? चिंता इस बात की करिए कि आन्दोलन का उद्देश्य क्या है ? कोई भी अपने मोहल्ले में ही छोटे छोटे आन्दोलन शुरू कर सकता है भ्रष्टाचार और शोषण के विरुद्ध, और देखिये आपका मोहल्ला, गाँव किसी नेता का मोहताज नहीं रह जाएगा | वहाँ के भ्रष्ट से भ्रष्टतम व्यक्ति भी सीधी राह पकड लेगा |

स्वतंत्रता के इतने वर्षो बाद भी हम गुलाम के गुलाम ही रहे ! कारण केवल एक ही था कि हम आपस में कभी एक नहीं हो पाए और न किसी ने होने दिया | जब भी कभी एक होने की कोशिश की तो सत्ता के भूखे भेडियों ने हमें बिखेर दिया | कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर तो कभी प्रांत के नाम पर | इतने वर्षों के बाद अब यह समझ आ गया है कि पार्टी कोई भी जीते, शोषित हम ही होंगे जब तक हम असंगठित रहेंगे | अब गाँधी जी के तीन बन्दर बनने का समय निकल गया | अब समय है नए भारत के उदय का | जिसके नागरिक हिन्दू-मुस्लिम, ब्राम्हण या शूद्र के रूप में नहीं केवल भारतीय के रूप में पहचाने जायेंगे | वे होंगे जागृत भारतीय, विशुद्ध भारतीय ! -विशुद्ध चैत

पराधीनता की शिक्षा

Indian Educationऋषियों ने ज्ञान प्राप्त किया और ब्राम्हणों को सौंपा | ब्राम्हणों ने कुछ विशेष वर्णों तक ज्ञान को सीमित रखा | लेकिन तब तक शिक्षा अपनी विशिष्टता व गरिमा बनाए हुए था | तब कृष्ण, अर्जुन, कर्ण, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अशोक जैसे लोग निकले | हाँ तब भी कुछ लोगों को शिक्षा से केवल इसलिए वंचित रखा गया, क्योंकि उन्हें गुलाम ही रखना था |

समय के साथ शिक्षा का रूप बदला और पंडितों ने ज्ञान की जगह रटन्त विद्धा को महत्व दिया | लोगों ने शास्त्र रट लिए पर ज्ञान प्राप्त नहीं किया | युद्ध कौशल शास्त्रों में ही धरा रह गया और लोग रामलीला देख कर पराक्रमी बनने लगे | परिणाम हुआ कि अर्जुन और कर्ण, अशोक या चन्द्रगुप्त फिर नहीं आये और विदेशियों के हम गुलाम बन गए | कारण था आत्मज्ञान की परिभाषा स्वयं के ज्ञान से बदल कर आत्मा का ज्ञान कर दिया जाना | स्वयं की क्षमताओं और योग्यताओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करना नास्तिकता की श्रेणी में आ जाना | जो कि पहले गुरुकुल में गुरु स्वतः ही यह ध्यान रखते थे कि कौन किस विषय में अच्छा प्रदर्शन करेगा और उसे उसी विषय में ज्यादा श्रम करने के लिए कहते थे | जैसे पाण्डव में सभी धनुर्धर नहीं थे और सभी गदाधर नहीं थे जबकि सभी ने शिक्षा एक ही गुरु से प्राप्त किया था | सभी शास्त्रों में पारंगत थे लेकिन युधिष्ठर को ही धर्मराज की उपाधि दी जाती रही | लेकिन किसी को किसी से कम करके नहीं आँका जाता था और है |

विदेशियों ने शिक्षा को सुलभ बना दिया लेकिन भारतीय चाणक्य या चन्द्रगुप्त नहीं बने, टॉम और टौमी बन गए | भारतीय से इन्डियन बन गए | गौरवशाली भारतीय न बनकर अंग्रेजों के गुलाम बन गए | संस्कृत और हिंदी बोलने में शर्मिंदा और अंग्रेजी बोलने मैं गौरान्वित होने लगे | भारतीय संस्कृति घर की चारदीवारी पर कैद हो गई और उछ्ख्रिन्लता और छिछोरापन सड़कों पर निकल आया | लड़कियों को कपड़ों से घृणा होने लगी और फैशन के नाम पर कपडे उतारने लगीं | कारण शिक्षा का अर्थ ज्ञान न होकर मानसिक रूप से गुलाम होने की प्रवृति हो गई | शिक्षा पद्धति इस तरह से बनाई गई कि भारतीयों को भारतीय होने पर शर्मिंदगी लगे और यह शर्मिंदगी दिलो-दिमाग पर इस तरह बैठ जाए कि पूरे जीवन भारतीय होने पर गर्व न कर सके |

आज शिक्षित वर्गों को आप देखे तो पायेंगे कि वे एक अच्छे नस्ल के गुलाम हैं न कि जागरूक भारतीय | वे शिक्षित होते हैं नौकर बनने के लिए और नौकरी करते हुए मर जाते हैं | भ्रष्टाचार व शोषण के लिए औरतों की तरह गाल बजाने और सरकार व प्रशासन को दोष देने में जीवन बिता देते हैं लेकिन स्वयं कभी कोई साहस नहीं कर पाते | कभी वे अंग्रेजों के पेंट पकड़ते हैं तो कभी किसी नेता की धोती | लेकिन कभी नहीं कोशिश करते कि स्वयं पर विश्वास करके देश के लिए कुछ करने के लिए आगे आयें | -विशुद्ध चैतन्य

क्या एक आम नागरिक Addl. Director General of Police को गिरफ्तार कर या करवा सकता है ?

Fighting for the Justice.

अंग्रेजों के अत्याचार के बाद अब अपनों के अत्याचार सहने को मजबूर

हमारे पूर्वज जब जंगलों में रहते थे और किसी भी प्रकार की सभ्यता का विकास नहीं हुआ था उस वक्त जंगल का कानून चलता था मतलब जिसमें जैसी क्षमता है(शारीरिक, मानसिक या आर्थिक) उसका उपयोग करके वह अपने दुश्मन का संहार करता था, उसका शोषण करता था बाद में अपना गुलाम बना लेता था| धीरे-धीरे सभ्यता विकसित होती चली गई इंसान ने अपने जीने के लिये कुछ आवश्यक कायदे कानून बनाना शुरू किये, जिससे वह बिना किसी भय व रूकावट के सुगमता व सरलता से जिन्दगी व्यतीत कर सके|

पहले यह कायदे-कानून छोटे-छोटे कबीलों में लोकप्रिय हुये बाद में यह कबीले आपस में मिलकर शहर के शहर बसाते चले गये और फिर देश बसाये| समय के अनुसार इंसान ने अपनी सुविधानुसार अपनी भलाई व जीवित रहने के लिये नियम, कायदे व कानून बनाये और कुछ अधिकार दरोगा या प्रबंधकों को दिये गये जिसका उपयोग कर वह नागरिकों को अनुशासन में रहने के लिये बाध्य कर सकें| इस सारी कायनात पर अगर हम दृष्टि डालें तो हमें नजर आयेगा कि जो भी कानून हमने बनाये हैं वह अपनी सुविधा के लिये बनाये हैं न कि किसी को “अंधी ताकत” देने के लिये, मगर कानून के कुछ रखवालों ने “इस ताकत” को अपनी खुद की ताकत मान लिया है और “इस ताकत” को अपने “खुद के स्वार्थ के लिये” व उन लोगों के लिये “जिनकी मेहरबानी(भ्रष्ट नेता व बाहुबली) से वे यह ताकत हासिल करते हैं” के उपयोग के लिये जी-जान से जुट गये हैं जिसका उदाहरण हम अपने देश में जगह-जगह देख सकते हैं|

पूरे देश की वह जनता जो सही मायने में दबंगों द्वारा शोषित होती हैं वह इस कदर पुलिस प्रशासन से आतंकित रहती है कि अगर कोई पुलिस की वर्दी पहने साधारण शख्स भी दिखाई दे जाये तो डर के मारे उनकी “घिग्घी” बंध जाती है और वे आतंकित होकर सोचने लगते हैं कि कहीं किसी ने हमारे खिलाफ झूठी शिकायत तो नहीं दर्ज कर दी जबकि वहीं पर यह दबंग, बाहुबली व अपराधी इस कदर कानून के खिलाड़ी होते हैं कि वे करते तो खुद अपराध हैं और मगर खुद ही जाकर पीड़ित के खिलाफ शिकायत कर देते हैं और मालुम पड़ता हैं कि पीड़ित को ही आरोपी बना दिया गया हैं जिससे पुलिस प्रशासन के नुमांइदों को मौका मिल जाता है पीड़ितों का शोषण करने के लिये और वे जम कर उनका शोषण करना शुरू कर देते हैं| इन नुमांइदों में दौलत की भूख इस कदर होती है कि वे मौका मिले तो जरूरत पड़ने पर “मरते हुये इंसान” की चमड़ी भी बेच खाये|

संगठन के पास ऐसा ही एक मामला आया है जिसमें मोहिनी कामवानी जी जिस मुजरिम के खिलाफ F.I.R. दर्ज करने वाशी पुलिस थाने गईं थी वहां उनकी F.I.R. तो दर्ज की नहीं गई, बल्कि बाद में आरोपी के द्वारा Underworld से उनको धमकियाँ दिलवाई गईं जिस नंबर से धमकी आई थी उसे आरोपी के नंबरो से मिलाया गया तो यह साबित हो गया कि आरोपी का संबंध धमकी देने वाले से हैं| मगर पुलिस की लापरवाही की वजह से आरोपी देश के बाहर चला गया और जब एक बार आया तो पुलिस प्रशासन से पूछने पर पुलिस ने बताया कि आरोपी जल्दी में था इसलिये पूना अपने आँफिस चला गया और इस वजह से उससे पूछ-ताछ नहीं हो पाई जबकि यहाँ देखा जाये तो एक साधारण नागरिक के खिलाफ कोई शिकायत करे तो उसे फौरन ही गिरफ्तार कर लिया जाता है जबकि इस आरोपी के संबंध “Underworld” से हैं यह दिखाई देने के बाद भी उसे गिरफ्तार करना तो दूर पूछताछ के लिये भी बुलाने की हिम्मत नहीं हुई, मामले को संज्ञान में लाने के लिये गृह विभाग, राष्ट्रीय महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सभी जगह 30-40 पत्र भेजे गये उनके सहयोगात्मक रवैये के पत्र भी नवी मुंबई कमीश्नर को मिले मगर वाशी पुलिस ने कोई भी कार्यवाही नहीं की|

यह परिवार आरोपी से कुछ इस कदर पीड़ित रहा है कि मोहिनी कामवानी जी के” स्वतंत्रता सेनानी पति स्व. नारायणदास जी” उस “आर्थिक कमी”(जो उनके बेटे की 15 वर्षों की कमाई और उनकी खुद की कमाई का पैसा था) की वजह से बीमार होकर कोमा में चले गये और चार दिनों में उनकी मृत्यु हो गई, जो उनसे Forgery करके लूटा गया था|
कोमा में जाने से पहले इन स्वतंत्रता सेनानी ने अपनी पत्नि मोहिनी कामवानी जी के पांव पकड़े थे और उनसे माफी माँगते हुये कहा कि “मुझे माफ कर देना मैंने तुम्हारे बेटों का पूरा पैसा भलमनसाहत व अपनी नादानी की वजह से लुटने दिया और तुम्हारे बेटों की जिन्दगी बर्बाद कर दी” इतना कहने के बाद वे कोमा में चले गये और चार दिनों में उनकी मृत्यु हो गई| छः महीने के बाद यह सब देख कर छोटा बेटा भी 21 दिन कोमा में रहने के बाद मृत्यु को प्राप्त हुआ| इस सबसे निकलने के बाद मोहिनी जी के बड़े बेटे दिलीप कामवानी जी ने महाराष्ट्र सरकार के लिये मुफ्त Aids का कार्यक्रम सफलतापूर्वक किया और इस कार्यक्रम की सफलता के चर्चे मीड़िया और समाचार पत्रों में भी काफी हुए, इस सफलता को देखते हुये महाराष्ट्र पुलिस ने भी उनसे महाराष्ट्र पुलिस के लिये Aids का प्रोग्राम करने के लिये आग्रह किया जिस आग्रह को उन्होंने मानते हुये सफलतापूर्वक मुफ्त में इस कार्यक्रम को आयोजित किया जिसकी सफलता को आप इस वाक्य से समझ सकते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों व जवानों की पत्नियों ने कहा कि “आपने हमारी आँखें खोलकर हमारे परिवार को एक नई दिशा दी है अब हम अपने पतियों पर ध्यान देंगे” क्योंकि पुलिस विभाग में यह कहावत प्रचलित है कि “इन्हें सबकुछ मुफ्त में मिलता है खाना, पीना और Aids(क्योंकि “रेडलाईट एरिया” में भी उन्हें सब कुछ मुफ्त में प्राप्त होता है)|

इस परिवार की आर्थिक व मानसिक परेशानी की वजह से एक बेटी जिसकी शादी नहीं हो सकी थी, उसने बाद में काफी परेशान होकर आत्महत्या कर ली और दुसरी बेटी मानसिक रुप से विक्षिप्त हालात में है जो साथ में रहती है| जब किसी भी प्रकार की शिकायत पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं सुनी गई तो मोहिनी जी ने अनशन पर बैठने का फैसला किया, वहाँ पर सरकार से किसी भी प्रकार का सहयोगात्मक रवैया प्राप्त नहीं हुआ मगर उल्टा मोहिनी कामवानी और उनके बेटे को 26 जनवरी 2012 के दिन वाशी पुलिस ने गलत तरीके से उनके घर से गिरफ्तार कर लिया और किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता भी प्राप्त नहीं होने दी गई, बाद में वाशी अदालत में पेश कर के चार दिन के लिए हथकड़ी पहना कर जेल में भेज दिया गया| आखिर थक कर मोहिनी जी ने पुलिस प्रशासन व शासकीय महकमें के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय में Writ दाखिल करने का फैसला किया| जब उच्च न्यायालय में मुकदमा चला तो वकीलों को एक-एक करके धमका कर इनसे अलग करवा दिया गया जिससे कोई भी वकील इनका मामला लड़ने आगे नहीं आया| हर महीने में जज बदल दिये गये जिससे फैसला हो ही न सकें| आखिर मोहिनी जी के बेटे दिलीप कामवानी जी ने खुद मुकदमा लड़्ने का बीड़ा उठाया और कानूनी धारायें पढ कर मुकदमा लड़ने का प्रण किया| उन्हें मालूम पड़ा किसी भी मुकदमे में वकील अगर बहस कर रहा हो तो उसे ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट दिये जाते हैं जबकि आम नागरिक को अधिक से अधिक समय दिया जाता है| इनके मुकदमें में जज साहब ने इन्हें 1-1 घंटे तक बोलने दिया जिससे दिलीप जी ने चारों पुलिस अधिकारियों को दोषी करार करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जिसका परिणाम यह हुआ कि जब 13 जून 2013 को अंतिम फैसला आया तो चारों पुलिसवालों (1) जावेद अहमद, अतिरिक्त DGP, क़ानून व व्यवस्था, महाराष्ट्रा (2) वाशी DCP पुरुषोतम कराड (3) वाशी इंस्पेक्टर लक्ष्मन काले (4) इंस्पेक्टर रावसाहेब सरदेसाई, को दोषी करार दिया गया और मोहिनी जी व दिलीप जी को 6 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया मगर इस फैसलें में यह बात समझ नहीं आई कि सुप्रीम कोर्ट के “D. K. Basu 1997” क़ानून के हिसाब से ऐसे दोषी पुलिस अधिकारियों को निलम्बित करना है और उनपर उसी हाई कोर्ट को केस चलाना चाहिये, मगर ऐसा नहीं हुआ| पुरे भारतवर्ष की अदालतें 1977 से हर गैर कानूनी जेल के केस में यह कार्यवाही करती आ रही हैं क्यों की यह सुप्रीम कोर्ट का क़ानून है, जबकि मोहिनी जी के केस में इस फैसले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। दोषी पुलिस वालों को कोई सज़ा नहीं ???!!! यह फैसला देख कर मोहिनी जी बिफर पड़ीं और उन्होंने कहा कि इस देश में एक ही तरह के मामले में सिर्फ मुझ गरीब बुढ़िया को अलग फैसला देकर मेरे साथ नाइंसाफी क्यों की जा रही है? और उन्होंने कहा कि मैं अन्तिम साँस तक यह लड़ाई लडूँगी और तब तक चैन से नहीं बैठूँगी जब तक इन चारों दोषी पुलिस वालों को सुप्रीम कोर्ट के क़ानून के हिसाब से सज़ा नहीं मिल जाती|

फिर उन्होंने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया Special Leave Petition (SLP) के द्वारा| साथ में निश्चय किया कि वे CrP.C. 43 Criminal Procedure Act 1973 के तहत आम नागरिक के अधिकार का उपयोग करते हुये इन चारों पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार करते हुये नजदीकी पुलिस थाने में आवश्यक कागजी कार्यवाही करते हुये ले जायेंगी, इस कानूनी कार्यवाही को अंजाम देने के लिये उन्होंने 1 महीना पहले ही सभी संबंधित विभागों में पत्र भेजे जिसमें CM, DyCM, HM, DGP, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, सोनिया गांधी वगेरह, साथ में आज़ाद मैदान पुलिस को भी और तय किया कि 15 अगस्त को जावेद अहमद Addl. Director General of Police को उनके आँफिस से गिरफ्तार करके कोलाबा पुलिस स्टेशन के सुपुर्द करेंगी जिससे आगे की कार्यवाही कोलाबा पुलिस के अधिकारी अंजाम दें| जिसके लिये एक पत्र आज़ाद पुलिस स्टेशन में दिया गया जिसमें कहा गया कि हम सब आज़ाद मैदान में 15 अगस्त को 11 बजे इकट्ठे होंगे, (क्योंकि आज़ाद मैदान से पुलिस मुख्यालय तक मोर्चा नहीं ले जा सकते) इसलिये आज़ाद मैदान का कार्यक्रम खत्म करके सभी लोग पुलिस मुख्यालय अपने-अपने साधन से पहुँचेंगे| मगर इस पूरे कार्यक्रम को असफल करने के लिये मोहिनी जी का Facebook A/c. ब्लॉक करवा दिया गया जिससे ज्यादा लोग आज़ाद मैदान पहुँच नहीं पायें, आज़ाद मैदान में सभी को दरवाज़ा बंद करके रोक लिया गया और बाहर जाने नहीं दिया गया लगभग 4 घंटे के बाद जब यह लिखकर दिया गया कि हमारा आज़ाद मेदान का कार्यक्रम समाप्त हो गया है तब 4 घंटे बाद वहाँ से छोड़ा गया, जहाँ से सभी पुलिस मुख्यालय पहुँचे मगर वहाँ गेट के अन्दर नहीं जाने दिया गया और कहा गया कि साहब ऑफिस में नहीं हैं सबने पूछा कि उनके घर का पता दीजिये वो उच्च न्यायालय के दोषी करार दिये गये हैं और मोहिनी जी के भी दोषी हैं इसलिये मोहिनी जी उन्हें गिरफ्तार करेंगी और कोलाबा पुलिस स्टेशन ले जायेंगी। मोहिनी जी ने कहा कि अगर हम कानून का उल्लंघन कर रहे हैं तो आप हमें गिरफ्तार कर सकते हैं, नहीं तो हम यहां से जब तक नहीं जायेंगे जब तक पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार करके कोलाबा पुलिस स्टेशन नहीं ले जाते|

आखिर 1 घंटे बाद सभी को अन्दर बुलाया गया और फिर कोलाबा पुलिस के ACP और पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ के साथ मीटिंग की गई उन्होंने कहा कि साहब तो ऑफिस में नहीं हैं, आप हमें पत्र दे दीजिये| मोहिनी कामवानी जी ने कहा कि पत्र तो हम पहले भी कई बार दे चुके हैं, अब हमें action लेना है और उन्हें गिरफ्तार करना है| पुलिस अधिकारियों ने कहा कि वे यहां नहीं हैं, तो मोहिनी जी ने कहा कि हम तो गिरफ्तार किये बिना नहीं जायेंगे, चाहे तो आप हमें गिरफ्तार कर लें, अगर आपको ऐसा लगता है कि हम कानून तोड़ रहे हैं तो आप हमें जो चाहें वो सज़ा दे सकते हैं| फिर पुलिस मुख्यालय में सभी को नाश्ता करवाया व चाय पिलवाई, उसके बाद हमारी तरफ से यह कहा गया कि आप हमें जावेद अहमद जी के घर का पता दीजिये हम कानूनी नियम CrP.C. 43 Criminal Procedure Act 1973 के आम नागरिक को मिले अधिकार के तहत दोषी पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार करने का हक रखते हैं, हम उन्हें गिरफ्तार करेंगे और नज़दीकी पुलिस थाने में बंद करेंगे| उन्होंने पता देने से मना किया और कानूनी प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास जारी रखा बाद में अधिकारी को हम लोगों ने एक पत्र दिया जिसमें लिखा गया कि “मैं मोहिनी कामवानी CrP.C. 43 Criminal Procedure Act 1973 के तहत जावेद अहमद को गिरफ्तार करने आई थी| जावेद अहमद जी ऑफिस में मौजूद नहीं थे हमें कोलाबा पुलिस के अधिकारी ACP श्री जुहिकर और विनोद सावंत मिले और उनसे बातचीत करने के बाद हमने उनसे जावेद अहमद जी के घर का पता माँगा जो उन्होंने नहीं दिया आखिर हमने उनसे कहा कि पोस्ट द्वारा पता भेजे जिससे हम उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर सकें” और सभी लोग वापिस आ गये मोहिनी जी ने तय किया है कि वे 4 दिन तक इन्तजार करेंगे उनसे बाद वापिस जावेद अहमद को गिरफ्तार करने पुलिस मुख्यालय पहुँचेगी।

लेकिन दुसरे दिन ही मोहिनी जी को, उसी बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए वाशी पुलिस इंस्पेक्टर लक्ष्मन काले ने एक नोटिस दे दिया है की आप हमें गिरफ्तार नहीं कर सकती ???!!! जो पुलिस वाले जेल में होने चाहियें बल्कि गैर कानूनी पुलिस की कुर्सी पर बैठे हैं वोह कैसे ऐसा नोटिस दे सकते हैं ???!!! यानी की पुलिस वालों द्वारा आम आदमी को गैर कानूनी गिरफ्तार करने का ‘अधिकार’ है लेकिन हमको कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए पुलिस वालों को कानूनी गिरफ्तार करने का संविधान द्वारा दिया गया अधिकार नहीं है ???!!! तो फिर यह “नागरिकी गिरफ्तारी का क़ानून सेक्शन 43 CrPC” वाला कानून संविधान से निकाल देना चाहिए, या सिर्फ दिखावे के लिए रखा हुआ है क्या जिससे आम नागरिक यही सोच-सोच कर खुश होता रहे कि हम भी पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार कर सकते हैं ???!!!

इसलिए दिनाक 22 अगस्त 2013 को मोहिनी और उनके बेटे ने वाशी पुलिस को इन 4 दोषी पुलिस के खिलाफ FIR दर्ज करने का पत्र दिया है जिसमे यह लिखकर दिया है की इन पुलिस वालों ने एक 79 वर्षीया स्वंत्रता सेनानी की विधवा पर इन सेक्शन के तहत संगीन अपराध किये हैं: IPC सेक्शन 466, 469, 471, 474, 167, 196, 220, 191, 192, 201, 120 (B), 199, 200 & 145 (2) Bombay Police Act व अन्य – अपराध यह हैं: आपराधिक षड्यन्त्र के तहत वाशी कोर्ट में झूठा केस, झूठा आरोप पत्र, झूठा कसमनामा जज से मुझे गैर कानूनी जेल में डालने का आर्डर पास कराने के लिए, बॉम्बे हाई कोर्ट में रिकार्ड की जालसाजी और मिथ्याकरण (फोर्जरी) पुलिस स्टेशन डायरी का पकड़ा जाना, बॉम्बे हाई कोर्ट में भी झूठा कसमनामा, सबूत, रिपोर्ट व जवाब दाखिल करना, सुप्रीम कोर्ट व बॉम्बे हाई कोर्ट की अवमानना, Perjury – इन सभी सेक्शन के तहत इन 4 दोषी पुलिस वालों के लिए जेल की सज़ा 3 से 7 साल की है !!!

जो भी जागरूक इंसान मोहिनी जी की इस मुहिम में साथ देना चाहते हैं वो उनसे इस मोबाइल नं. 9920412577 या घर के टेलीफोन 022-27823443 (बॉम्बे) पर संपर्क करके सहयोग दे सकते हैं|

यह पूरी प्रक्रिया यह दर्शाती है कि कोई भी पुलिस अधिकारी या प्रशासकीय अधिकारी अगर किसी भी वाजिब शिकायत-पत्र पर कार्यवाही नहीं करेगा तो उस शिकायत-पत्र कि बिनाह पर उस अधिकारी को अदालत द्वारा दोषी करार दिलवाया जा सकता है और बरखास्त भी करवाया जा सकता है| इसके बाद भी अगर प्रशासन दोषी के खिलाफ कार्यवाही नहीं करता, तो आम जनता को यह कानूनी अधिकार प्राप्त है कि दोषी को जेल भिजवाकर उसपर कार्यवाही करवा सके|

अगर कोई प्रशासकीय या पुलिस अधिकारी आपके द्वारा भेजे गये पत्र के जवाब में यह कहता है कि “मेरे पास बहुत काम है, मैं अभी नहीं देख सकता” तो वह अधिकारी उस पद के लायक नहीं है| हम उसके खिलाफ Writ दाखिल करके उसका “Demotion” करवा सकते हैं क्योंकि जो भी अधिकारी अपनी कार्यक्षमता के बल पर उस पद पर सुशोभित होता है, अगर वह मना करता है तो इसका मतलब यह है कि उस अधिकारी में प्रतिभा व क्षमता नहीं है मामलों को सुलझाने की|

इस देश में लोकतंत्र के नाम पर जो कानूनी अधिकार दिये गये हैं वह किसी कानून के रखवालों की बपौती नहीं है बल्कि आम नागरिक का अधिकार है, हम अगर कानून का सहारा लें तो किसी भी भ्रष्ट नेता, अधिकारी या अपराधी को सज़ा दिला सकते हैं| ज़रूरत है संगठित होने की व शोषित होने के बजाये मामले को सामने लाकर अपराधियों व भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मामला उठाने की|
संगठित होने के लिये SMS करें|

Post Link: http://www.bvbja.com/EmailReply.aspx?Pg=276&Rnd=12521612071891420691130120

धन्यवाद
सोनिका शर्मा
मोब. 09920913897
भ्रष्टाचार विरूद्ध भारत जागृति अभियान
मामले से संबंधित दस्तावेज़ :
• Bombay High Court – Order – 20-11-12
• Bombay High Court _ Final Judgment Order
• Bombay High Court order #2 – dt 23-11-12
• FIR – 22 Aug 13 – MK
• Supreme Court – Appeal Bombay High Court Case – 29 July 2013
• मोहिनी काम्वानी द्वारा बनाया हुआ वृत्तचित्र (डाक्यूमेंट्री फिल्म) वीडियो YouTube पर देखिये, जो की उनके खिलाफ किये हुए भ्रष्टाचार, अत्याचार व नाइंसाफी की सच्ची कहानी है सबूतों के साथ
• यहाँ देखिये, ‘जय महाराष्ट्रा’ टीवी पर मोहिनी काम्वानी का इंटरव्यू…
http://www.bvbja.com/EmailReply.aspx?Pg=276&Rnd=12521612071891420691130120

देश और समाज के कल्याणार्थ

Shrimad Bhagwat

कोई भी धर्म, सम्प्रदाय या पंथ या समाज पाखण्ड हो जाता है जब पास की नज़र कमजोर हो जाती है और दूर की नजर बढ़ जाती है | अर्थात अपनों के दोष दिखाई देना बंद हो जाता है और दूसरों के दोष ज्यादा दिखाई देने लगते हैं |

जब उस धर्म, सम्प्रदाय या समाज के लोग अपनों के विपदा पर पर्दा और दूसरों के दुखों पर नमक छिड़कने लगते हैं |

जब भजन-कीर्तन और साधना मात्र कर्म-काण्ड बन जाता है और भाव या श्रद्धा की जगह मज़बूरी ले लेती है |

जब महान आत्माओं के दिखाए मार्ग पर न चलकर धूनी रमाकर बैठ जाते हैं और साल में एक बार दान करते हुए फोटो खिंचवाकर पुण्य कमाते हैं |

जब देश और समाज के कल्याणार्थ सोचने के बजाये विश्वकल्याण और ब्रम्हांड कल्याण जैसे महान संकल्प लेकर विदेशों में ऐश करते हैं या अपने आश्रम में बैठ कर भजन कीर्तन करते हैं |

नोट: उपरोक्त बातें केवल पाखंडी संतों, सन्यासियों, भक्तों, अनुयाइयों, धार्मिक लोगों और धर्म के व्यापार में लिप्त ठेकदारों के लिए है | अन्य किसी भी सज्जन, धर्मपरायण, कर्तव्यपरायण, दानी. भक्त, श्रद्धालू महानुभावों से किसी भी तरह सम्बद्धता दुर्भाग्यपूर्ण है | -विशुद्ध चैतन्य

अपने राष्ट्र, संस्कृति व भाषा का सम्मान ही आत्मसम्मान है |

देश

टैक्सी स्टैंड पर दो टैक्सी वाले बतिया रहे थे कि एक
विदेशी उनके करीब आकर रुका।

डू यू नो इंग्लिश? उसने पूछा।

दोनों बितर-बितर उसे देखते रहे।

पार्ले वू फ्रासेज़? वाही बात उसने फ्रेंच में दोहरायी।

दोनों के चेहरे पर कोई भाव नहीं आये।
पार्ले इटेलियनो?

जवाब नदारद।

”हाबलान अस्तेदी एस्पानोल?” वही बात उसने
स्पेनिश में बोली।

दोनों के चेहरे पर शिकन तक न उभरी।

तंग आकर वो रुखसत हो गया।
दोनों टैक्सी वाले कुछ क्षण उसे जाते देखते रहे, फिर
उनमें से एक बोला–”यार चानन सिंह मेरे को लगता है
हमें भी ज्यादा नहीं तो कम से कम एक आध
विदेशी भाषा सीखनी चाहिए। कभी भी काम आ
सकती है।”

**छड्ड परे।” दूसरा बोला–”उन विलायती साहब
को चार आती थी, किसी काम आयी उसके?’

रुपये के मूल्य डॉलर के अनुपात में गिर क्यों रहें हैं ?

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सभी भारतीय देशभक्त  मित्रगण ध्यान दें !

हैदराबाद के शिवकुमार अरी ने एक महत्वपूर्ण अनुसन्धान किया है कि रुपये के मूल्य डॉलर के अनुपात में गिर क्यों रहें हैं ?

उन सभी विशुद्ध भारत प्रेमियों के लिए एक सलाह जो भारतीय रुपयों के गिरते मूल्य से चिंतित हैं :

पूरे भारत में केवल सात दिनों के लिए कार का प्रयोग बंद कर दें | केवल आपातकालीन परिस्थिति में ही प्रयोग करें |

फिर देखिये डॉलर कैसे औंधे मुंह गिरता है | यही सत्य है | डॉलर का मूल्य पेट्रोल से नियंत्रित होता है जिसे Derivative Trading (व्युत्पादित व्यापार) कहते हैं | अमेरिका ने सत्तर वर्ष पहले ही स्वर्ण से डॉलर का मूल्यांकन करना बंद कर दिया था | क्योंकि अमेरिका समझ चुका था कि पेट्रोल स्वर्ण  के बराबर ही मूल्यवान है, इसलिए उसने मध्य पूर्वी देशों के साथ समझौता किया कि वे पेट्रोल केवल डॉलर्स में ही बेचें | यही कारण है कि अमेरिकन डॉलर्स में Legal Tenders for debt लिखा होता है | जिसका अर्थ होता है यदि आप अमेरिकन डॉलर न लेना चाहें और आप भारत की तरह उसके बदले स्वर्ण लेना चाहें तो वे आपको नहीं देंगे |

आप भारतीय रुपए पर देखिये कि लिखा होगा I promise to pay the bearer… और गवर्नर के हस्ताक्षर होंगे | जिसका अर्थ है कि आप यदि रुपये न लेना चाहें और उसके बदले केवल स्वर्ण लेना चाहें तो रिजर्व बैंक आपको स्वर्ण में भुगतान करेगा | (असल में मुद्रा विनिमय नियम में कुछ अंतर हो सकता है, लेकिन यहाँ केवल समझाने के लिए यह उदाहरण रखा गया है)

आइये इसे एक उदहारण से समझते हैं:

मान लीजिये कि भारतीय पेट्रोल मंत्री मध्य पूर्वी देश जाते हैं पेट्रोल खरीदने, वहाँ का व्यापारी कहता है कि एक लीटर पेट्रोल एक डॉलर का है लेकिन मंत्री जी के पास डॉलर नहीं है केवल रूपये हैं | तब क्या करेंगे मंत्री जी ? तब मंत्रीजी अमेरिका से कहेगा कि डॉलर दीजिये |  अमेरिकन फेडरल रिज़र्व बैंक एक सफ़ेद कागज़ लेगा, उसमें डॉलर प्रिंट करेगा और भारतीय मंत्री को दे देगा | इस तरह हम डॉलर लेते हैं, पेट्रोल विक्रेता को देते हैं और पेट्रोल लेकर आते हैं |

लेकिन यहाँ भी एक धोखाधड़ी है | यदि आप अपना विचार बदल लें और डॉलर को वापस लौटाना चाहें तो हम उसके बदले हम उनसे स्वर्ण नहीं माँग सकते | वे कहेंगे “क्या हमने बदले में कुछ वापस करने का वचन दिया था ? क्या आपने डॉलर को देखा नहीं नहीं ? हमने स्पष्ट शब्दों में लिखा है Dollar that is Debt.”

तो अमेरिका को डॉलर प्रिंट करने के लिए स्वर्ण की आवश्यकता नहीं है | उन्हें केवल सफ़ेद कागज़ चाहिए डॉलर प्रिंट करने के लिए जैसा वे चाहें |

लेकिन अमेरिका मध्य पूर्वी देशों को केवल डॉलर में पेट्रोल बेचने के लिए क्या देता है ?

मध्य पूर्वी देशों के शासक अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका को किराया देते हैं | इसी तरह वे आज भी अपना कर्ज ही चुका रहें हैं  जो उन्होंने अमेरिका से सड़क और बिल्डिंग अपने देश में बनवाने के लिए लिया था | यही है अमेरिकन डॉलर का मूल्य जो वे दे रहें हैं | यही कारण है कि कुछ लोग कहते हैं कि एक दिन डॉलर का नामोनिशान मिट जाएगा |

भारत की वर्तमान समस्या का कारण है अमेरिकन डॉलर का क्रय | अमेरिकन सफ़ेद कागज़ भारतीय स्वर्ण के बराबर ही मूल्यवान है | इसलिए यदि हम पेट्रोल की खपत कम कर पायें तो डॉलर का मूल्य नीचे उतर आएगा |

The Above Details are translated originally from Telugu to English by Radhika and in Hindi by Vishuddha Chaitanya.

Kindly share this and make everyone aware of the facts of American Dollar V/s Indian Rupee.

And here is a small thing other than petrol , what we can do to our Indian Rupee

 

guys this is an excellent research done by a guy Siva Kumar Ari frm

Hyderabad, Andhra Pradesh, INDIA
Very Interesting Article MUST SHARE

An Advice to all who are worrying about fall of Indian Rupee.

Throughout the country please stop using cars except for emergency for only seven days (Just 7 days). Definitely Dollar rate will come down. This is true. The value to dollar is given by petrol only.This is called Derivative Trading. America has stopped valuing its Dollar with Gold 70 years ago.

Real story of American Dollar v/s Indian Rupee
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Americans understood that Petrol is equally valuable as Gold so they made Agreement with all the Middle East countries to sell petrol in Dollars only. That is why Americans print their Dollar as legal tender for debts. This mean if you don\’t like their American Dollar and go to their Governor and ask for repayment in form of Gold,as in India they won\’t give you Gold.

You observe Indian Rupee, \” I promise to pay the bearer…\” is clearly printed along with the signature of Reserve Bank Governor. This mean, if you don\’t like Indian Rupee and ask for repayment,Reserve Bank of India will pay you back an equal value of gold.(Actually there may be minor differences in the Transaction dealing rules, but for easy comprehension I am explaining this)

Let us see an example. Indian petroleum minister goes to Middle East country to purchase petrol, the Middle East petrol bunk people will say that liter petrol is one Dollar.
But Indians won\’t have dollars. They have Indian Rupees. So what to do now? So That Indian Minister will ask America to give Dollars. American Federal Reserve will take a white paper , print Dollars on it and give it to the Indian Minister. Like this we get dollars , pay it to petrol bunks and buy petrol.

But there is a fraud here. If you change your mind and want to give back the Dollars to America we can\’t demand them to pay Gold in return for the Dollars. They will say \” Have we promised to return something back to you? Haven\’t you checked the Dollar ? We clearly printed on the Dollar that it is Debt\”
So, Americans don\’t need any Gold with them to print Dollars. They will print Dollars on white papers as they like.

But what will Americans give to the Middle East countries for selling petrol in Dollars only?

Middle East kings pay rent to America for protecting their kings and heirs. Similarly they are still paying back the Debt to America for constructing Roads and Buildings in their countries. This is the value of American Dollar. That is why Many say some day the Dollar will be destroyed.

At present the problem of India is the result of buying those American Dollars. American white papers are equal to Indian Gold. So if we reduce the consumption of petrol and cars, Dollar will come down

The Above Details are translated originally from Telugu Language to English by Radhika Gr.
Kindly share this and make everyone aware of the facts of American Dollar V/s Indian Rupee.

And here is a small thing other than petrol , what we can do to our Indian Rupee

YOU CAN MAKE A HUGE DIFFERENCE TO THE INDIAN ECONOMY BY FOLLOWING FEW SIMPLE STEPS:-

Please spare a couple of minutes here for the sake of India.
Here\’s a small example:-

At 2008 August month 1 US $ = INR Rs 39.40
At 2013 August now 1 $ = INR Rs 62

Do you think US Economy is booming? No, but Indian Economy is Going Down.

Our economy is in your hands.INDIAN economy is in a crisis. Our country like many other ASIAN countries, is undergoing a severe economic crunch. Many INDIAN industries are closing down. The INDIAN economy is in a crisis and if we do not take proper steps to control those, we will be in a critical situation. More than 30,000 crore rupees of foreign exchange are being siphoned out of our country on products such as cosmetics, snacks, tea, beverages, etc. which are grown, produced and consumed here.

A cold drink that costs only 70 / 80 paise to produce, is sold for Rs.9 and a major chunk of profits from these are sent abroad. This is a serious drain on INDIAN economy. We have nothing against Multinational companies, but to protect our own interest we request everybody to use INDIAN products only at least for the next two years. With the rise in petrol prices, if we do not do this, the Rupee will devalue further and we will end up paying much more for the same products in the near future.

What you can do about it?
Buy only products manufactured by WHOLLY INDIAN COMPANIES.Each individual should become a leader for this awareness. This is the only way to save our country from severe economic crisis. You don\’t need to give-up your lifestyle. You just need to choose an alternate product.

Daily products which are COLD DRINKS,BATHING SOAP ,TOOTH PASTE,TOOTH BRUSH ,SHAVING CREAM,BLADE, TALCUM POWDER ,MILK POWDER ,SHAMPOO , Food Items etc. all you need to do is buy Indian Goods and Make sure Indian rupee is not crossing outside India.

Every INDIAN product you buy makes a big difference. It saves INDIA. Let us take a firm decision today.

we are not anti-multinational. we are trying to save our nation. every day is a struggle for a real freedom. we achieved our independence after losing many lives.
they died painfully to ensure that we live peacefully. the current trend is very threatening.

multinationals call it globalization of Indian economy. for Indians like you and me, it is re-colonization of India. the colonist\’s left India then. but this time, they will make sure they don\’t make any mistakes.

Russia, South Korea, Mexico – the list is very long!! let us learn from their experience and from our history. let us do the duty of every true Indian. finally, it\’s obvious that you can\’t give up all of the items mentioned above. so give up at least one item for the sake of our country!

We would be sending useless forwards to our friends daily. Instead, please forward this to all your friends to create awareness.

Siva Kumar Ari
https://www.facebook.com/arisivakumar
Coourtey http://www.allindiadaily.com/2013/08/real-story-of-american-dollar-vs-Indian-Rupee.html#sthash.DZHlOAt4.dpuf
———————-
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