Don’t aim for success if you want it; just do what you love and believe in, and it will come naturally. यदि आप सफलता चाहते हैं तो इसे अपना लक्ष्य ना बनाइये, सिर्फ वो करिए जो करना आपको अच्छा लगता है और जिसमे आपको विश्वास है, और खुद-बखुद आपको सफलता मिलेगी. David Frost डेविड फ्रोस्ट

Archive for दिसम्बर, 2013

इंसान क्यों बन जाता है हैवान ?

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वे आप-हम जैसे ही होते हैं, हमारे-आपके जैसे ही दिखते हैं और हमारी-आपकी ही तरह सोचते और महसूस करते हैं। फिर उनके दिमाग की वह कौन-सी गुत्थी है जो कई बार उन्हें इतना उलझा देती है कि वे रेप जैसी घिनौनी और अमानवीय हरकत कर गुजरते हैं? निर्भया कांड को एक साल हो चुका है, तब से लेकर अब तक यह सवाल सबके जेहन में कौंध रहा है। बहरहाल, रेपिस्ट के दिमाग में झांकने की कोशिश कर रहे हैं प्रभात गौड़ :किसी रेपिस्ट की सोच, उसके दिमाग के काम करने का तरीका और आगे बढ़कर अपनी इस घिनौनी सोच को अंजाम तक पहुंचा देने की पूरी प्रक्रिया ह्यूमन सेक्शुअलिटी का शायद सबसे स्याह पहलू है। तमाम विशेषज्ञ बरसों से उन मनोवैज्ञानिक ताकतों और दबावों को जानने-समझने की कोशिश करते रहे हैं, जो किसी इंसान को सेक्शुअल वॉयलेंस के लिए प्रेरित करते हैं।अनियंत्रित कामेच्छा है जड़?
रेप को लेकर आम सोच यह रही है कि रेप की वजह अनियंत्रित कामेच्छा है, जो किसी पल विशेष में इंसान के दिमाग पर जबर्दस्त तरीके से हावी हो जाती है। इसी अनियंत्रित कामेच्छा को संतुष्ट करने के लिए वह रेप जैसी सेक्शुअल वॉयलेंस की ओर कदम बढ़ा देता है। लेकिन इस मामले में हुई तमाम रिसर्च इस बात को प्रमाणित करती नजर आती हैं कि एक रेपिस्ट के मस्तिष्क में होने वाली मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल में सेक्शुअल डिजायर से ज्यादा ताकतवर किसी महिला पर हावी होने और उसे कष्ट में तपड़ते देखने की चाह होती है और इसी चाहत को पूरा करने के लिए वह इंसान सेक्स को माध्यम बनाता है। सेक्स करने की सामान्य और सहज प्राकृतिक इच्छा इस काम में गौण हो जाती है।

क्या कहती हैं रिसर्च रेपिस्ट के मस्तिष्क को अच्छी तरह से पढ़ने के लिए बहुत समय पहले कनाडा में एक रिसर्च की गई, जिसमें कुछ सामान्य पुरुषों को शामिल किया गया। उन्हें सेक्स संबंधी कुछ सीन दिखाए गए और सेक्स पर आधारित बातें सुनाई गईं। इस दौरान उनके प्राइवेट पार्ट में होने वाले रक्त के प्रवाह को स्टडी किया गया। इस रिसर्च में शामिल साइकॉलजिस्ट डॉ. हॉर्वर्ड बारबेरी ने बताया कि जब इन पुरुषों को ऐसे सेक्शुअल सीन दिखाए गए जिनमें महिला पुरुष के बीच सहमति से सेक्स हो रहा था, तो उनके प्राइवेट पार्ट में रक्त प्रवाह पूरी तरह से सामान्य था। इसके बाद इन पुरुषों को ऐसे सीन दिखाए गए जिनमें महिलाओं को सेक्स के लिए बाध्य किया जा रहा था, जिनमें महिलाएं कष्ट और परेशानी से तड़प रही थीं। ऐसे सीन देखकर इन पुरुषों के प्राइवेट पार्ट की उत्तेजना में पहले के मुकाबले करीब 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जिसका अर्थ यह है कि इतनी उत्तेजना के साथ वे सेक्स कर पाने में समर्थ नहीं होंगे। जैसे-जैसे महिला के ऊपर जोर जबर्दस्ती बढ़ाई जाती रही, इनकी उत्तेजना में गिरावट होती गई।

बाद में यही प्रयोग कुछ ऐसे पुरुषों पर भी दोहराया गया जो रेप के दोषी करार दिए जा चुके थे। इन लोगों में से ज्यादातर में सहमति से होने वाले सेक्स के मुकाबले जबर्दस्ती होने वाले सेक्स सीनों के दौरान ज्यादा उत्तेजना दर्ज की गई। आपसी सहमति से होने वाले सेक्स सीन के मुकाबले इन लोगों के प्राइवेट पार्ट में रक्त प्रवाह तब ज्यादा बढ़ गया, जब उन्होंने महिला को परेशानी में देखा। जैसे-जैसे महिला पर ज्यादा कष्ट ढाया जाता रहा, ऐसे लोगों की उत्तेजना बढ़ती गई। इस रिसर्च को द जर्नल ऑफ क्लिनिकल ऐंड कंसल्टिंग साइकॉलजी में भी छापा गया।

कारण कई
इसी तरह की और न जाने कितनी रिसर्च इस बात को प्रमाणित करने के लिए काफी हैं कि पुरुष के मन में महिला के साथ रेप करने की इच्छा के जाग्रत होने के पीछे न तो महिलाओं के द्वारा पहने जाने वाली भड़काऊ पोशाक का कोई रोल है, न उसकी भाव भंगिमा का और न ही उसके आमंत्रण के भावों का। खुद पुरुष की सेक्स को लेकर किसी अतृप्त इच्छा भी इसके पीछे की वजह नहीं होती।

जाने-माने साइकिएट्रिस्ट डॉ. समीर पारेख के मुताबिक, रेप का सेक्शुअलिटी, सेक्शुअल डिजायर या महिला के प्रति आकर्षण से कोई लेना-देना नहीं है। आकर्षण या सेक्शुअल डिजायर को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन कभी-कभी उसके साथ कुछ दूसरे कारक भी मिल जाते हैं। और न सिर्फ मिल जाते हैं, बल्कि हावी हो जाते हैं। ऐसे में इंसान रेप जैसी वारदात की ओर बढ़ता है। यह विशुद्ध रूप से सैडिस्टिक अप्रोच है, जो किसी इंसान के भीतर एक दिन में डिवेलप नहीं होती और न ही ऐसे फैसले कोई शख्स तुरत-फुरत ले सकता है। इस तरह के लोगों की एक अलग तरह की पर्सनैलिटी होती है, जिसके बनने में वक्त लगता है और उसके पीछे एक नहीं, बहुत से कारण जिम्मेदार होते हैं। सेक्स की इच्छा पूर्ति करने की भावना इसमें बहुत पीछे होती है।

रेपिस्ट के दिमाग की गुत्थियां जो उसे बना देती हैं इंसान से हैवान

1. दोस्तों का प्रेशर
ज्यादातर मामलों में ऐसे लोगों का पीयर ग्रुप यानी उनके आसपास के लोग और मित्रमंडली भी ऐसे ही होंगे। ये लोग उन्हें ऐसे काम करने के लिए उकसाते हैं और यह भरोसा दिलाते हैं कि तुम पकड़े नहीं जाओगे और तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। ऐसे लोग आमतौर पर अकेले नहीं होते। उनका पूरा ग्रुप होता है और उस ग्रुप में वे अकसर ऐसी बातों को डिस्कस करते हैं। यही वजह है कि अकसर तीन-चार लोगों के मिलकर रेप करने के मामले सामने आते हैं।

2. महिलाओं के प्रति अनादर का भाव
ऐसे लोगों के ग्रोइंग फेज यानी उम्र के उस पड़ाव को देखें जब वे बड़े हो रहे थे और बचपन से जवानी में प्रवेश कर रहे थे, तो पता चलता है कि उस दौर में महिलाओं के प्रति उनका नजरिया सम्मानपूर्ण नहीं था। महिलाओं को लेकर वे पूर्वाग्रहों से ग्रस्त थे। महिलाओं के लिए उनके मन में इज्जत के भाव नहीं रहे। उनके मन में हमेशा यह बात हावी रही कि महिलाएं पुरुषों से नीचे दर्जे की हैं।

3. नशीले पदार्थ
नशीले पदार्थों और शराब के जरूरत से ज्यादा सेवन की भी रेपिस्ट तैयार करने में बड़ी भूमिका है। रेप की घटनाओं को अंजाम देने से पहले ऐसे लोग ज्यादातर मामलों में नशे में पाए जाते हैं। नशा ही उन्हें यह भरोसा दिलाता है और उनके भीतर यह आत्मविश्वास भरता है कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। उनके भीतर एक तरह का परवर्टेड सेंस ऑफ पावर आ जाता है। जिस वक्त वे ऐसा कर रहे होते हैं, उस वक्त उनके दिमाग में यह बात साफ होती है कि हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। इस तरह का चिंतारिहत दिमाग उन्हें उत्तेजित करने में भी मदद करता है।

4. पॉरनॉग्रफ़ी का पेच
जरूरत से ज्यादा पॉरनॉग्रफ़ी देखना भी किसी रेपिस्ट के मस्तिष्क का एक अहम पहलू है। पाया गया है कि ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा पॉरनॉग्रफ़ी देखते हैं, वैसी कल्पनाएं करते हैं और फिर उन कल्पनाओं को साकार करने की प्रवृत्ति उन्हें किसी महिला को अपना निशाना बनाने के लिए उकसाती है।

5. सैडिस्ट अप्रोच
ऐसे लोगों को अपने शिकार के बारे में बुरा महसूस नहीं होता। उन्हें लगता है कि जिस महिला के साथ वे ऐसी हरकत करने जा रहे हैं, वह कोई इंसान नहीं है, बल्कि कोई सेक्स ऑब्जेक्ट है, जिसे दर्द नहीं होता, जिसका मन नहीं दुखता। महिला को कष्टपूर्ण हालत में देखकर, उसे चीखते-चिल्लाते देखकर उन्हें आनंद मिलता है। महिला के प्रति उनके मन में कोई संवेदना नहीं होती।

6. पछतावे के भाव की कमी ऐसे लोगों के मन में उस काम को लेकर कोई पछतावा नहीं होता, जो वे कर रहे हैं। साथ ही एक तरह की हीन ग्रंथि उनके भीतर ही भीतर पनप रही होती है। वे बार-बार उसी काम को दोहरा सकते हैं, बिना किसी पछतावे के। यही वजह है कि तमाम ऐसे लोग रेप के मामले में पकड़े जाते हैं, जो पहले भी कई महिलाओं को अपना शिकार बना चुके हैं।

7. हावी होने की इच्छा
किसी महिला पर हावी होने की टेंडेंसी, उसे यह जताने की कोशिश कि तुम्हारी कोई औकात नहीं है, तुम बेहद कमजोर हो, हम तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते हैं, भी रेप के मामलों के लिए जिम्मेदार है। इस तरह के भाव रेप करने वालों के दिमाग में धीरे-धीरे गहरे होते जाते हैं और उन्हें रेप करने के लिए उकसाते हैं।

8. प्रीप्लानिंग से काम
कोई इंसान रेप करने का फैसला अचानक नहीं लेता, यह उसी पल होने वाला और तुरत-फुरत लिए गए फैसले के आधार पर होने वाला कृत्य कतई नहीं है। रेप प्रीमेडिटेटेड होते हैं, इसलिए यह कह देना सही नहीं है कि किसी खास परिस्थिति में किसी के सेक्शुअल इंपल्स इतने ज्यादा हो गए कि ऐसा कदम उठ गया। ऐसे काम को करने की प्लानिंग पहले से मन में चल रही होती है और उसे खूब सोच- समझकर अंजाम दिया जाता है। यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में रेपिस्ट महिला का ही कोई जानकार होता है, जो काफी पहले से उसे जानता होता है।

बोलती बंद कर दी बीजेपी और कांग्रेसियों की केजरीवाल ने !!!!

131214053406_arvind_kejriwal_304x171_reuters_nocreditयह परम्परागत राजनीति से हठ कर एक नयी शुरुआत है | भविष्य में होने वाले चुनावी दंगल में अब नये नियम बनेंगे और नए बिसात बिछेगी |

आप को बिना शर्त समर्थन की बात कह सियासी बिसात में उलझाने की कांग्रेस-बीजेपी की रणनीति उस समय फेल होती नजर आई जब केजरीवाल ने 18 मुद्दों पर दोनों पार्टियों से अपनी राय जगजाहिर करने को कहा।

1. दिल्ली में वीआईपी कल्चर बंद करना
दिल्ली सरकार का कोई भी विधायक, मंत्री या अफ़सर लालबत्ती की गाड़ी नहीं लेगा, बड़े बंगले में नहीं रहेगा और अपने लिए विशेष सुरक्षा नहीं लेगा। हर नेता और अफ़सर आम आदमी की तरह रहेगा। दिल्ली में विधयक और पार्षद फंड बंद कर पैसा सीधे मोहल्ला सभाओं को दिया जाएगा।

2. जनलोकपाल बिल
भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक सख़्त जनलोकपाल बिल पास होना चाहिए। आम आदमी पार्टी उसी जनलोकपाल बिल को दिल्ली के लिए पारित करना चाहेगी। ज़ाहिर है कि यह क़ानून बनने के बाद 15 वर्ष के कांग्रेस शासनकाल में हुए घोटालों की भी जांच की जाएगी। बीजेपी के दिल्ली नगर निगम में सात वर्षों में किए गए घोटालों की भी जांच की जाएगी। आपकी पार्टी के समर्थन का यह मतलब कतई नहीं होना चाहिए कि यदि आपके किसी भी नेता के खिलाफ़ भ्रष्टाचार का कोई भी सबूत मिलता है तो उसे किसी भी प्रकार की रियायत दी जाएगी।

3. दिल्ली में स्वराज स्थापित हो
अपने-अपने मोहल्ले, कालोनी और गलियों के बारे में निर्णय लेने के अधिकार सीधे जनता को दिए जाएं। अधिक से अधिक निर्णय मोहल्ला सभाओं के जरिए सीधे जनता ले और सरकार उन निर्णयों का पालन करें। ऐसी व्यवस्था लागू करने के लिए आम आदमी पार्टी स्वराज का कानून लाना चाहेगी।

प्रश्नः क्या कांग्रेस पार्टी उपर्युक्त प्रस्ताव का बिना शर्त समर्थन करती है और उसे लागू करवाने में पूरा सहयोग देगी?

4. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा
आम आदमी पार्टी की सरकार केंद्र सरकार से यह मांग करेगी कि दिल्ली को भारतीय संघ के अन्य राज्यों के समान दर्जा मिले। डीडीए और पुलिस पर केंद्र सरकार का नियंत्रण खत्म हो।

5. बिजली कंपनियों का ऑडिट
कई ऐसे तथ्य जनता के बीच में आए हैं जो यह शक़ पैदा करते हैं कि बिजली कंपनियों ने अपने बहीखातों में भारी गड़बड़ कर रखी है। आम आदमी पार्टी इन बिजली कंपनियों का निजीकरण से लेकर आजतक का स्पेशल ऑडिट करवाना चाहती है। दिल्ली में बिजली के बिल आधे किए जाएंगे।

6. बिजली के तेज़ चलते मीटर

कई लोगों को शक़ है कि दिल्ली में बिजली के मीटर तेज चल रहे हैं। इन मीटरों की किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा जांच करायी जानी चाहिए। अगर ये मीटर तेज चलते पाए जाते हैं तो जब से ये मीटर लगाए गए हैं, तब से लेकर आज तक जितना अधिक पैसा बिजली कंपनियों ने वसूला है, वह उनसे वापस लिया जाए और मीटर बदले जाएं।

7. दिल्ली में पानी की व्यवस्था
दिल्ली में पानी का एक बहुत बड़ा माफ़िया काम कर रहा है, जिसे सीधे अथवा परोक्ष रूप से बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के कुछ नेताओं का राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है। ऐसे माफ़िया और उनको संरक्षण देने वालों के खिलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी। दिल्ली में पानी की चोरी रोकी जाएगी और यह पानी लोगों के घरों में पहुंचाया जाएगा।

8. दिल्ली की अनधिकृत कालोनियां
पिछले चुनाव के पहले कांग्रेस ने वादा किया था कि सरकार बनने के एक साल के अंदर इन्हें नियमित कर दिया जाएगा। लेकिन पांच साल में सरकार ने कुछ नहीं किया। आम आदमी पार्टी चाहती है कि इन कालोनियों को एक वर्ष के अंदर नियमित करके इनमें तुरंत सभी मूलभूत सुविधएं उपलब्ध कराई जाएं।

9. दिल्ली की झुग्गी बस्तियां
कई इलाकों में यह कहकर झुग्गियां तोड़ दी गईं कि उन्हें पक्के मकान या प्लॉट दिए जाएंगे लेकिन आज तक उन्हें कुछ नहीं दिया गया। उनके नाम के प्लॉटों पर नेताओं के साथ मिलकर भू-माफ़ियाओं ने कब्जा कर लिया।

आम आदमी पार्टी चाहती है कि झुग्गियों में रहने वालों को आसान शर्तों पर पक्के मकान दिए जाएं। जब तक पक्के मकान नहीं दिए जाते उनकी झुग्गियों को तोड़ा न जाए और वहीं पर उनके लिए साफ़-सफ़ाई और शौचालयों की व्यवस्था की जाए।

10. स्थायी एवं नियमित कार्यों के लिए ठेकेदारी पर कर्मचारी
आम आदमी पार्टी स्थायी और नियमित कार्यों में ठेकेदारी प्रथा बंद करके सभी अनियमित एवं अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करना चाहती है और इनका शोषण बंद करना चाहती है।

11. व्यापार एवं उद्योग
वैट का सरलीकरण किया जाएगा। वैट की दरों की पुनर्समीक्षा की जाएगी ताकि दिल्ली फिर से होल सेल व्यापार का केन्द्र बन सके।

12. रिटेल में एफ़डीआई

आम आदमी पार्टी दिल्ली में किराना में एफ़डीआई के ख़िलाफ़ है।

13. दिल्ली के गांव देहात
दिल्ली में 360 गांव हैं और उनमें आज भी खेती होती है। गांव में रहने वालों की जमीनें बिना उनकी मंजूरी के सस्ते दामों में छीनकर बड़े-बड़े बिल्डरों को दे दी जाती हैं। आम आदमी पार्टी दिल्ली के किसानों को वो सभी सुविधएं और सब्सिडी देना चाहती है जो दूसरे राज्यों के किसानों को उपलब्ध हैं।

14. शिक्षा व्यवस्था
दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस के कई मंत्रियों और विधयकों के खुद के कई स्कूल चल रहे हैं। इसलिए जानबूझकर सरकारी स्कूलों का बंटाधार किया जा रहा है ताकि लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने को मजबूर हों। प्राइवेट स्कूलों की फ़ीस पर कोई लगाम नहीं लगाई जाती क्योंकि इनमें कई तो विधायकों के अपने स्कूल हैं। आम आदमी पार्टी सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर प्राइवेट स्कूलों से भी बेहतर करना चाहती है। प्राइवेट स्कूलों में फ़ीस निर्धारण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाएगा।

15. स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नए अस्पताल खोलना
दिल्ली में नए सरकारी अस्पताल खोले जाएंगे और सरकारी अस्पताल में प्राइवेट अस्पतालों से भी बेहतर इलाज का प्रबंध किया जाएगा।

16. महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष दल बनाना
दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा के लिए स्पेशल सुरक्षा दल बनाया जाएगा। नई अदालतें बनाई जाएं और जज नियुक्त किए जाएं ताकि महिलाओं के साथ उत्पीड़न के किसी भी मामले में तीन से छह महीने के अंदर सज़ा हो और सख़्त से सख़्त सज़ा हो।

17. न्याय व्यवस्था
नई अदालतें खोली जाएं और नए जजों की नियुक्ति की जाए ताकि कोई भी मामला छह महीने से एक साल के अंदर निपटाया जा सके। न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भी सख़्त कदम उठाए जाएं।

18. केंद्र सरकार की मदद
कई मुद्दे ऐसे हैं जिनमें केंद्र सरकार की मदद की ज़रूरत पड़ेगी। आप पार्टी जानना चाहती है कि क्या कांग्रेस का समर्थन दिल्ली विधानसभा में आठ विधायकों तक ही सीमित रहेगा या पार्टी दिल्ली की जनता के इन मुद्दों का समाधान निकलवाने के लिए केंद्र सरकार पर भी दबाव डालेगी?

ये देश अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए जाना जाता है…

Indian Culture

भारतीय सभ्यता व उसकी गरिमा की झलक जो यहाँ देखने को मिल रही है, वह नग्नता में कभी नहीं मिल सकती

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वयस्क समलैंगिकों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंध को गैर-क़ानूनी करार दिया था.  पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल और वृंदा करात सहित कई सांसदों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले पर निराशा जताई है. सर्वोच्च अदालत ने धारा 377 को दोबारा वैध करार देते हुए कहा है कि इस मसले पर किसी भी बदलाव के लिए अब केंद्र सरकार को विचार करना होगा.

 “मेरी निजी राय ये है कि ये निजी स्वतंत्रता के मामले हैं. ये व्यक्तिगत पसंद का मुद्दा है. ये देश अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए जाना जाता है.” -कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी

“हाई कोर्ट ने समझदारी के साथ एक पुरातन, दमनकारी और अन्यायपूर्ण कानून को खत्म किया था जो बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन करता था. …मुझे उम्मीद है कि संसद इस मामले पर गौर करेगी.” -कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी

“इस फ़ैसले के साथ ही भारत वापस 1860 के दौर में चला गया है.  ….कानूनी याचिका में समय लग सकता है लेकिन में इससे इनकार नहीं कर रहा हूं. यूपीए सरकार सभी विकल्पों पर विचार करेगी.” – केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम 

अभिव्यक्ति की आजादी के लिए भारत जाना जाता है यह सत्य है और खजुराहो, कामसूत्र इसके प्रमाण हैं | हमारे शास्त्रों में भी हर नैतिक या अनैतिक आचरण को बिना काट-छांट के पूरी ईमानदारी से सामने रखा, फिर चाहे किसी ऋषि या अन्य देवताओं के नैतिक या अनैतिक कार्य ही क्यों न रहें हों | यह हमारी संस्कृति ही है जो हमें स्पष्टतावादी होने के लिए प्रेरित करती रही और आज भी स्पष्टवादिता को सराहा जाता है |

लेकिन आज उन्ही का उदाहरण देकर लोग हमारी ही संस्कृति को तहस नहस करने पर आमादा हो गए | जो देवताओं और ऋषियों ने गलतियाँ की उनकी सजा उन्हें मिली यह भी उदाहरण है लेकिन ये लोग आज उसका उदाहरण हमें लांछित करने के लिए कर रहें | ये वे लोग हैं जिनकी संस्कृति आध्यात्म प्रधान नहीं बल्कि विलासिता और भोग प्रधान है | जिनके लिए शरीर मात्र भोगने का साधन है और जो यह मानकर चलते हैं कि मनुष्य का केवल एक ही जन्म होता है इसलिए जितना भोगना है भोग लो |

लेकिन हम अपनी संस्कृति में झांकें तो पायेंगे कि हमारी हर एक विधान व कर्म-काण्ड भौतिक व आध्यात्मिक संतुलन के महत्व पर आधारित है | यह और बात है कि तथाकथित धर्म के ठेकदारों और पंडितों को इनका ज्ञान नहीं है क्योंकि उनके लिए धर्म और कर्म-काण्ड केवल राजनीति और व्यवसाय मात्र ही है | शारीरिक सुख प्राप्त करना प्रत्येक प्राणी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रकृति का अनुपम उपहार है प्राणी जगत के लिए | यही मूल है सृजन और विकास का | इसलिए विवाह को आध्यात्मिक विकास के लिए सर्वोच्च माध्यम माना गया क्योंकि यही एक ऐसा माध्यम है जिससे प्रकृति प्रदत्त स्वाभाविक क्रिया से सरलता से सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान अर्जन किया जा सकता है | इसके लिए कठोर ब्रम्हचर्य और तपस्या की आवश्यकता नहीं रह जाती |

आइये पहले समझते हैं भारतीय दर्शन में विवाह का क्या महत्व है ?

marrige_saptamas_914614531वैदिक संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कारों को जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार माने जाते हैं। विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। हिंदू धर्म में विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है।

शाब्दिक अर्थ

विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है – विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

सात फेरे और सात वचन

विवाह एक ऐसा मौक़ा होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दो परिवारों का जीवन भी पूरी तरह बदल जाता है। भारतीय विवाह में विवाह की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है। जो सबसे मुख्य रस्म होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं। हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। और यह सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।

सात फेरों के सात वचन

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है। कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।

प्रथम वचन

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!

(यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रतउपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है। जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं, वही सुखद फलदायक होता है। पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।

द्वितीय वचन

पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!

(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने मातापिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है–गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद-विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

Navya_Nair_Gold_Wedding_Saree[8]तृतीय वचन

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!

(तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)

चतुर्थ वचन

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!

(कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)

इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है। विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पाएगी। इसलिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होकर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।

पंचम वचन

स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!

(इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है। वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

यह वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है। बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है, साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

images (8)षष्ठम वचनः

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,      
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!

(कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं। विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है। वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं। ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा। यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए, साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।

सप्तम वचनः

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!

(अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है। इसलिए इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

netherlands-gay-marriageतो विदेशियों के विवाह और हमारे विवाह में जमीन आसमान का अंतर है | हमारे यहाँ विवाह केवल शरीर मात्र से नहीं होता, यहाँ विवाह में शरीर से अधिक आत्मा को महत्व दिया जाता है क्योंकि शारीरिक मोह तो कुछ समय बाद कम होने लगता है लेकिन यदि शरीर को माध्यम मान कर उससे आगे की यात्रा की जाए तो प्रेम बढ़ता ही चला जाता है | चूँकि हम पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं, इसलिए हम यह मानकर चलते हैं कि जो जीवन साथी इस जन्म में आपका साथ निभा गया अगले जन्म में भी वही जीवन साथी के रूप में मिले तो आपसी समझ अधिक होगी क्योंकि उन्हें दोबारा नए सिरे से प्रयास करने की आवश्यकता नहीं रहेगी एक दूसरों को समझने के लिए | और यह इसलिए क्योंकि हम मानते हैं कि प्रत्येक जन्म के साथ व्यक्ति कुछ नवीन सीखता है और पिछले जन्मों के अनुभवों के आधार पर नए जन्म में वह मानसिक व आध्यात्मिक रूप में अधिक विकसित होता जाता है | लेकिन दुर्भाग्य से हम ऊपर की ओर गति करने के स्थान पर नीचे की ओर चल पड़े | हम पश्चिमी देशों की नक़ल करने लगे | हमारी शिक्षा और सोच सभी आध्यात्मिक धरातल से गिर कर भौतिकता और भोग के धरातल पर पहुँच गई |

tantraImageअधिकांश लोग यही मानते हैं कि विवाह का उद्देश्य केवल शारीरिक भोग और प्रजनन ही है, जबकि इससे भी बढ़कर है | प्राचीन भारत में सेक्स (काम-कला) पर गहन अनुसंधान किये गए और पाया कि काम से कुण्डलिनी को जागृत करना किसी और विधि से कहीं आसान है और उन्हीं अनुसंधानों का परिणाम है खजुराहो और वातस्यायन का कामसूत्र | तंत्र साधना में काम को ही प्रमुख माध्यम माना जाता है क्योंकि इसमें पुरुष शक्ति और स्त्री के आपसी सहयोग के कुण्डलिनी को सह्स्र्सार तक बहुत ही कम समय में व सुगमता से पहुँचाया जा सकता है | एक बार ऊर्जा को सहस्रार के चक्र तक गति मिल गयी फिर व्यक्ति काम से मुक्त हो जाएगा. ऐसा नहीं की सेक्स नहीं कर पायेगा? वह और भी कुशलता और संरक्षित ऊर्जा के साथ करेगा पर इसका दास नहीं होगा वरन इसका स्वामी होगा | काम ऊर्जा का स्विच उसके हाथ में होगा. अभी तो हमारी स्विच कामवासना के हाथ में हैं | जो प्रणय को ईश्वरीय वरदान मानकर पूरी तन्मयता व समर्पण भाव से उसमें उतरते हैं, उनके व्यक्तित्व से करुणा और प्रतिभा की रश्मियाँ विकरित होंगी | ऐसे लोग हिंसा बलात्कार या शोषण नहीं कर सकते |

जब स्त्री और पुरुष एक बार इस अनुभव को प्राप्त कर लेते हैं तो फिर उन्हें उससे आगे गति करना आसान हो जाता है और वे शरीर से परे का अद्वितीय आनंद प्राप्त करने के योग्य हो जाते हैं | उसके बाद वे जितने भी जन्म लें वे एक दूसरे को ढूँढ ही लेंगे क्योंकि वे एक दूसरे को शरीर से परे जानते हैं | इसलिए विवाह संस्कार को हमारे यहाँ विशेष स्थान प्राप्त है |

Kinnerलेकिन जब आज के युग के तथाकथित विद्वानों की बात करें और समलैंगिकता के समर्थन में उनके तर्क सुने तो समझ में आता है कि वे किस स्तर तक गिर चुके हैं | कारण है उनकी भौतिकता पर आधरित शिक्षा | उन्हें अनुभव ही नहीं है कि आध्यात्म और भौतिकता दो जीवन के दो पहलू हैं और दोनों का संतुलन ही जीवन को सुखमय बनाता है और आगे की यात्रा को सुगम बनाता है | तो उनके लिए समलैंगिक विवाह को मान्यता देना कोई गलत नहीं है क्योंकि उनके लिए विवाह मात्र शारीरक सुख प्राप्त करने का एक सामाजिक लाइसेंस है | समलैंगिकता मानसिक विकृति है और उपचार की आवश्यकता है लेकिन हमें यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हम बात कर रहें है उन लोगों की जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं विपरीत लिंगी के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए लेकिन मानसिक रूप से वे सामान लिंगियों के प्रति आकर्षित होते हैं | हम उनकी बात नहीं कर रहे जो जन्मजात उभयलिंगी हैं, जो न तो पुरुषों में आते हैं और न ही स्त्रियों में और जिन्हें किन्नर कहा जाता है | उनका अपना एक समाज है जो सामान्य समाज के साथ समन्वयता बनाकर चलता है और जिनसे सामान्य समाज को किसी प्रकार की कोई आपत्ति या असुविधा नहीं होती | क्यों नहीं ये समलिंगी इनके समाज में सम्मिलित हो जाते ?

अगर समलैंगिकों का साथ इनको मिल जाता है तो ये लोग भी औरों की तरह डिस्कोथिक, बार और रेव-पार्टीज़ में जा पाएंगे | इनको भी ऊँचे अत्याधुनिक लोगों का साथ मिल जाएगा जिससे ये लोग भी आधुनिक बन जायेंगे | किन्नरों को चाहिए कि वे समलैंगिकों को अपने समाज में स्वीकार कर लें | इससे सभी का भला होगा, उनकी समस्या भी सुलझ जायेगी और किन्नरों का समाज भी पाश्चात्य संस्कृति के पढ़े-लिखे समलैंगिकों को पाकर गौरवान्वित हो जाएगा |

वैसे भी हमारे देश में किन्नरों को सम्मान की दृष्टि से ही देखा जाता है | हर शुभ कार्यों में उनका आना शुभ ही माना जाता है | यह और बात है कि अशिक्षा की वजह से उनकी बोलचाल नहीं सुधर पायी | लेकिन यदि किन्नरों ने इन विलायती समलैंगिकों को अपने समाज में स्वीकार कर लिया तो निश्चित ही दोनों का भला हो जाएगा |

ये पश्चिमी मानसिकता के लोगों का आज भारत में बाहुल्य हो गया है और हमारे धर्माचार्यों के पास कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान या उपलब्धि नहीं है कि वे सिद्ध कर सकें कि पाश्चात्य संस्कृति जो हमपर थोपना चाहती है वह अनुचित है | कारण यह कि उनके ज्ञान केवल पुस्तकों को कंठस्थ करने तक ही हैं और व्यवहारिक रूप से कोई उन्नति नहीं कर पाए | वे सीमति रह गए भजन कीर्तन तक या रामलीला देख ली या कृष्ण लीला देख ली कभी डीवीडी चला कर | बस हो गया आध्यात्म इनका | इन्होने कभी नहीं प्रयास किया यह जानने की क्यों भारत में बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रहीं हैं, क्यों स्त्री उत्पीडन की घटनाएँ बढ़ रहीं हैं, क्यों भारतीय संस्कृति हाशिये पर पहुँच गई है…. | न तो ये समय के साथ स्वयं विकसित हुए और न ही किसी को विकसित होने दिया | नैतिक पतन इतना हो गया है कि कभी गाँव में कोई गाली दे देता था तो खबर बन जाती थी, लेकिन आज बच्चे पैदा होते ही गाली दे दे तो माँ-बाप का सीना चौड़ा हो जाता है | क्या यही है हमारा भारत जो आध्यात्म के लिए पूरे विश्व में सम्मानित था लेकिन आज यहाँ समलैंगिकता, लिव-इन-रिलेशनशिप, वाइफ स्वैपिंग आदि समान्य बात हो गयी ? लड़कियों का उत्तेजक अंगप्रदर्शन करना और कोई असंयमित हो जाए तो उसे नैतिकता का पाठ पढाना ?

यह सब हमारे देश को सांस्कृतिक व मानसिक रूप से ध्वस्त करने का षड्यंत्र है और इसे जितनी जल्दी समझ जाएँ उतना ही अच्छा है | अन्यथा परिणाम वही होगा जो आज विदेशियों की हो रही है और वे भारत को आदर्श मान कर भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं | लेकिन हम भारत को अमेरिका या इंग्लैण्ड बनाने पर तुले हुए हैं |

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क्या नए नए कानून बना देने से अपराध समाप्त हो जायेंगे ?

gty_judge_striking_gavel_courtromm_jt_120929_wgएक महत्वपूर्ण प्रश्न जिसे मैं हमेशा जानना चाहता था कि क्या नए नए कानून बना देने से अपराध समाप्त हो जायेंगे ?

समाप्त होना तो दूर कम होने का भी नाम नहीं ले रहे |
क्या हम भारतीयों ने स्वयं कभी जानने की कोशिश की कि कारण क्या है ?
अंग्रेजों की शिक्षा और अंग्रेजों के कानून, हमारा अपना भी कुछ है या नहीं ? क्या लाभ आपके वेद पढने का और रामलीला और महाभारत देखने का ?
क्या लाभ हुआ संघी और बजरंगी होने का जब आप छोटी छोटी बच्चियों के साथ हो रहे यौन अपराध को भी नहीं रोक पाए इतने हज़ार वर्षों के ब्रम्हचर्य और भगवद पाठ के बाद भी ?
क्यों नहीं हमने मूल कारणों पर ध्यान नहीं दिया ? क्यों नहीं हम अपराधियों को फाँसी पर चढ़ाकर समाप्त करने के स्थान पर उन कारणों पर काम करते जो किसी व्यक्ति को अपराधी बनाती है ? क्या कभी कोई प्रयोग किया हमारे देश के तथाकथित धार्मिक और धर्म के ठेकेदारों ने ?

मनोवैज्ञानिक और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अस्पताल में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर

मनोवैज्ञानिक और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अस्पताल में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर

मनोवैज्ञानिक और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अस्पताल में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर रचना भार्गव कहती हैं कि भारत में बलात्कार की घटनाओं के कारणों को लेकर अध्ययन नहीं किया गया, लेकिन पश्चिमी देशों में हुए अध्ययन के आधार पर धारणाएं बनाई जा सकती है. उनके अनुसार हर व्यक्ति के व्यवहार के अलग-अलग कारण, उनकी प्रवृत्ति, सोचने-समझने का ढंग जैसी बातें काम करती हैं.

वे कहती हैं, ”कोई भी व्यक्ति बलात्कार क्यों करता है, उसके पीछे कई कारण काम करते हैं. ऐसे मामलों में अभियुक्तों का बचपन, माता-पिता का बर्ताव, घर में कोई शराब या नशा करता हो या फिर उसके साथ बचपन में यौन व्यवहार की घटना तो नहीं घटी हो.”

रचना का कहना है सबसे महत्वपूर्ण पारिवारिक माहौल होता है और उसी के साथ सामाजिक कारण काम करते हैं. उनके अनुसार कोई व्यक्ति यौन दुर्व्यवहार करेगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन यौन दुर्व्यवहार और अपराध करने वालों में कुछ बातें समान होती हैं.

रचना बताती हैं, ”इन लोगों में ग़ुस्सा काफ़ी होता है. ये एंटी सोशल पर्सनेलिटी या साइकोपैथिक होते हैं यानी इन्हें अपराध करके दुख का बोध नहीं होता. अगर ये लोग बलात्कार करते हैं, तो किसी को दर्द देकर यौन हिंसा करने में इन्हें मज़ा आता है. इस तरह से काम को अंजाम देने वाले ज़्यादातर लोग बचपन में यौन हिंसा का शिकार हुए होते हैं या परिवार में अकेलापन झेल चुके होते हैं.’’

रचना बताती हैं कि ये किसी भी व्यक्ति की सैक्सुअल फ़ेंटेसी पर निर्भर करता है कि वो महिलाओं के साथ करना चाहते हैं या बच्चों के साथ. हालांकि वे इस बात से इनकार करती हैं कि ऐसी बातें किसी के भी दिमाग में अचानक नहीं आती है बल्कि ये प्रवृत्ति धीरे-धीरे बनती है. (Courtesy: BBC Hindi)

India Gang Rape

भारत का बच्चा बच्चा अध्यात्मिक है !

13949,xitefun-funny-monkey-business-01विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहाँ का बच्चा बच्चा अध्यात्मिक है !

भारत एक आध्यात्मिक देश है क्योंकि अध्ययन यहाँ का राष्ट्रीय खेल है | हम हमेशा अध्ययन करते रहते हैं इसलिए हम आध्यात्मिक हैं | यहाँ तो लोग जन्म ही लेते हैं अध्ययन करने के लिए, फिर चाहे सनी लियोन हो, शाहरुख खान हो केजरी हो या रजनीकांत हो…. हर किसी का अध्ययन यहाँ किया जाता है | हम न केवल अपने शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, औरों के शास्त्रों का अध्ययन भी करते हैं | केवल शास्त्र ही नहीं, कपड़े, जूते चप्पल….. सभी का अध्ययन करते हैं |

कॉलेजों में कई ऐसे विषयों का अध्ययन करवाए जाते हैं, जिसके स्नातक को न नौकरी मिलती है और न छोकरी, लेकिन अध्ययन की पुश्तैनी परम्परा है इसलिए अध्ययन कर रहें हैं | डिग्री मिल जाती है तो फिर से अखबारों का अध्ययन करने में जीवन व्यस्त हो जाता है क्योंकि एक अच्छे नौकर बनने के लिए नौकरी भी चाहिए | अब जब नौकर ही बनना है तो फिर सरकार के ही क्यों न बने ? तो फिर सरकारी नौकरी के लिए अलग से अध्ययन….

चलिए जैसे तैसे नौकरी मिल गई, छोकरी भी मिल गई और किस्मत अच्छी रही तो शादी में दहेज़ भी मोटा मिल गया, तो समझो पैसा वसूल | अब अध्ययन सामग्रियों की आवश्यकता नहीं रही तो नई नवेली दुल्हन को लगा दिया सारे घर से आध्यात्म को इकट्ठा करके बाहर बरामदे में जमा करने के लिए | बाहर बरामदे में जिज्ञासू आध्यात्मिक भी इकट्ठे होने लगेंगे और देखते ही देखते आधे से ज्यादा आध्यात्म किलो के भाव बिक जाता है और बचे हुए के लिए शाम को कबाड़ी आ ही जाता है बिन बुलाये |

तो हमारी शिक्षा किलो के भाव ! हमारा अध्ययन डिग्री के लिए ! हमारी डिग्री, शादी के लिए….!!!

कोई कितना आध्यात्मिक है इसका पता उसके घर में डिग्री मिल जाने के बाद भी, घर में बची और कबाड़ी के पास भी न बिकी, अध्ययन सामग्री के वजन से पता चलता है | अब ये डिग्री होल्डर आध्यात्मिक गुरु ईश्वर और ब्रम्ह की व्याख्या कर रहे होते हैं | अभी कुछ दिन पहले ही आचार्य एम्० ए० एल० एल० बी० विद्याधर पांडे जी के के घर से, कुछ कितावें किलो के भाव लाकर कल्लू पंसारी का सात साल का बेटा भी आध्यात्मिक हो गया और प्रवचन करने लगा |

इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि हम आध्यात्मिक हैं |

आइये हम स्वदेशी हो जाएँ !

आइये हम स्वदेशी हो जाएँ !DSC_0475

केवल संस्कृत का ही प्रयोग करें |

लेकिन संस्कृत जानते कितने लोग हैं ? जिस देश के लोगों को संस्कृति का पता नहीं, उनसे संस्कृत…?

चलिए मान लिया कि संस्कृत सीख लिया मैंने, तो संस्कृत न तो बैंक में काम आएगा और न ही परचून की दूकान में | न ही काम आएगा अस्पताल में और न ही काम आएगा महँगे मॉल में | तो संस्कृत सीख कर कोई स्वदेशी बने तो बने कैसे ?

चलिए छोडिये….आइये स्वदेशी हो जाएँ और कबड्डी खेलें |

अब कबड्डी जानते कितने हैं ? चलिए सीख लिया और खेलने भी लगे, तो मीडिया तो आएगी नहीं फोटो खींचने ! न ही पेप्सी और कोक आने वाले हैं प्यास बुझाने | न ही सहारा कोई सहारा देने वाला है हड्डी वड्डी टूटी तो | शिल्पा कटरीना तो आने से रही खिलाड़ियों के लिए सीटियाँ बजाने और न ही पूनम पाण्डे अपने कपड़े उतारेगी…. तो क्या फायदा स्वदेशी खेल में ??

जो लोग स्वदेशी की बातें करते हैं वे भी स्वदेशी के नाम पर राजनीति ही कर रहें हैं | किसी को क्या करना चाहिए सीखना चाहिए, पहले उसकी उपयोगिता तो निश्चित कीजिये ? जर्मनी बच्चे संस्कृत सीख रहें हैं इसलिए भारतीयों को भी सीखना चाहिए, यह भी कोई बात है भला ? मतलब नक़ल ही करना है !

समानता की होड़ है !!! जो विदेशी करेंगे हम भी वही करेंगे तभी समान होंगे ? जो लड़के करेंगे वही लडकियाँ करेंगी तभी समान होंगे ? जो पानी करेगा वही आग भी करेगा तभी समानता आएगी ? जो धरती करता है वही आकाश करेगा तभी समानता आएगी ?

अरे गुणी-ज्ञानी जनों !!! काहे नहीं हम स्वयं अपना सम्मान करना सीख जाएँ ? काहे के लिए हम विदेशियों का मुँह ताकते रहते हैं ? क्या खुद के मर्द या औरत होने पर भरोसा नहीं है, वह भी विदेशी ही बताएँगे ?

अपने दिल में हाथ रख कर कहें कि क्या आपको गर्व है कि आप भारतीय हैं ?

और है तो क्यों ?

राजा अविवेकी तो दुर्गति तय

  • “उत्पन्न होते ही बैरी और रोग का जो शमन नहीं करता, वह रोग और शत्रु के प्रबल होते ही एक दिन नष्ट हो जाता है। उनका मानना था, उस राज्य की दुर्गति तय है, जिसका राजा अविवेकी है, और जो प्रजा की भलाई के जगह अपने परिवार की सुख-सुविधा में लगा रहता है।”
  • “जिस राजा का मंत्री असंयमी और दुष्ट हो, वह एक दिन अपने राज्य से हाथ धो बैठता है। दुष्ट मंत्री के कारण प्रजा के कष्टों का समाचार राजा तक नहीं पहुंच पाता। इससे प्रजा में असंतोष पनपता है। यह राजा के पतन का कारण बनता है। इसलिए राजा को मंत्री के अलावा भी अन्य संपर्क-साधनों से जनता की समस्याओं से अवगत होने का प्रयास करते रहking-bhoja-5298b6a6bf171_exlना चाहिए।” -राजा भोज

अब हड़ताल गैर जमानती अपराध होगा।

111755अब कर्नाटक में हड़ताल करना मजाक नहीं होगा। राज्य में अब हड़ताल गैर जमानती अपराध होगा। कर्नाटक इशेंशियल सर्विसेज मेंटिनेंस बिल 2013 विधानसभा में बुधवार को पारित हो गया। हालांकि प्रमुख विपक्षी दल जनता दल यू ने इसका विरोध किया और वॉकआउट किया।

परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने बताया कि नए कानून के तहत पुलिस बिना वारंट के हड़ताली कर्मचारी को अरेस्ट कर सकेगी। ऎसा किया जा रहा है, ताकि जरूरी सेवाओं जैसे पानी, बिजली, स्वास्थ्य, परिवहन के क्षेत्र में कार्यरत लोग हड़ताल न कर सकें। इससे जनता परेशान होती है। अब इस कानून के तहत हड़ताल करना गैर-जमानती अपराध होगा।

अब हड़तालियों को एक साल तक की सजा हो सकेगी या पांच हजार रूपए तक जुर्माना हो सकेगा या दोनों सजा दी जा सकेंगी। पैसा देकर हड़ताल करवाने वालों तथा हड़ताल के लिए भड़काने वालों को भी यह सजा लागू होगी। यह बिल सरकार के आदेश प्रिंट करने के एक साल तक प्रभावी रहेगा। हालांकि यह अगले छह माह तक के लिए बढ़ाया भी जा सकेगा। -समाचार

मुझे लगता है कि यह बिल केवल कर्नाटक में ही ही पूरे भारत में लागू होना चाहिए | क्योंकि भारत में प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है और हड़ताल के नाम पर किसी निर्दोष को बंधक नहीं बना सकता कोई | हर आये दिन कोई न कोई हड़ताल कर रहा होता है और परेशान होता है कोई गरीब | जिसकी दिहाड़ी मारी जाती है या कोई ऑफिस टाइम पर नहीं पहुँच पाता और अकारण डांट खानी पड़ती है | इससे भी बुरा होता है जब हडतालियों के कारण कोई एम्बुलेंस समय पर नहीं पहुँच पाता और किसी को जान गँवानी पड़ती है | बन्द और धरना मे चन्द असामाजिक तत्व भीड मे शामिल हो कर लूट -पाट करते है कुछ नये छुट भैये नेता अखबारो, मीडिया के माध्यम से अपनी छवि केन्द्रीय नेताओ तक बनाने के लिये हीरो बनते है |

ठीक है मान लिया कि आपके साथ अन्याय हुआ है तो आपको हड़ताल करने का अधिकार है | लेकिन जिस प्रकार आपको हड़ताल करने का अधिकार है, उसी प्रकार किसी दूसरे को समर्थन करने या न करने का भी अधिकार है | आप क्यों जबरदस्ती ट्रैफिक रुकवाते हैं या अस्पताल में काम रुकवाते हैं | यदि आपके यह सब करने से आप की मांगें पूरी हो भी जाती हैं तो क्या आप के कारण हुए हानि की भरपाई कर पायेंगे ?

सार्वजनिक क्षेत्रों के कर्मचारियों जैसे बैंक, अस्पताल, यातायात, नगरनिगम, डाक व टेलीफोन विभाग के  कर्मचारियों या अधिकारीयों के हड़ताल करने पर उनके तनखा से राष्ट्र को हुई आर्थिक क्षति की भरपाई करनी चाहिए | न्याय व्यवस्था से जुड़े लोगों पर भी यही कानून लागू होना चाहिए क्योंकि न्याय भी अब व्यवसाय हो गया है और जनहित व जनसेवा जैसी बातें वहाँ किताबी हो गयी हैं | वकीलों के हड़ताल के कारण जनता को जो क्षति पहुँचती है उसे भी उन्हीं से वसूला जाना चाहिए | -विशुद्ध भारतीय
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