ऋषियों ने ज्ञान प्राप्त किया और ब्राम्हणों को सौंपा | ब्राम्हणों ने कुछ विशेष वर्णों तक ज्ञान को सीमित रखा | लेकिन तब तक शिक्षा अपनी विशिष्टता व गरिमा बनाए हुए था | तब कृष्ण, अर्जुन, कर्ण, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अशोक जैसे लोग निकले | हाँ तब भी कुछ लोगों को शिक्षा से केवल इसलिए वंचित रखा गया, क्योंकि उन्हें गुलाम ही रखना था |
समय के साथ शिक्षा का रूप बदला और पंडितों ने ज्ञान की जगह रटन्त विद्धा को महत्व दिया | लोगों ने शास्त्र रट लिए पर ज्ञान प्राप्त नहीं किया | युद्ध कौशल शास्त्रों में ही धरा रह गया और लोग रामलीला देख कर पराक्रमी बनने लगे | परिणाम हुआ कि अर्जुन और कर्ण, अशोक या चन्द्रगुप्त फिर नहीं आये और विदेशियों के हम गुलाम बन गए | कारण था आत्मज्ञान की परिभाषा स्वयं के ज्ञान से बदल कर आत्मा का ज्ञान कर दिया जाना | स्वयं की क्षमताओं और योग्यताओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करना नास्तिकता की श्रेणी में आ जाना | जो कि पहले गुरुकुल में गुरु स्वतः ही यह ध्यान रखते थे कि कौन किस विषय में अच्छा प्रदर्शन करेगा और उसे उसी विषय में ज्यादा श्रम करने के लिए कहते थे | जैसे पाण्डव में सभी धनुर्धर नहीं थे और सभी गदाधर नहीं थे जबकि सभी ने शिक्षा एक ही गुरु से प्राप्त किया था | सभी शास्त्रों में पारंगत थे लेकिन युधिष्ठर को ही धर्मराज की उपाधि दी जाती रही | लेकिन किसी को किसी से कम करके नहीं आँका जाता था और है |
विदेशियों ने शिक्षा को सुलभ बना दिया लेकिन भारतीय चाणक्य या चन्द्रगुप्त नहीं बने, टॉम और टौमी बन गए | भारतीय से इन्डियन बन गए | गौरवशाली भारतीय न बनकर अंग्रेजों के गुलाम बन गए | संस्कृत और हिंदी बोलने में शर्मिंदा और अंग्रेजी बोलने मैं गौरान्वित होने लगे | भारतीय संस्कृति घर की चारदीवारी पर कैद हो गई और उछ्ख्रिन्लता और छिछोरापन सड़कों पर निकल आया | लड़कियों को कपड़ों से घृणा होने लगी और फैशन के नाम पर कपडे उतारने लगीं | कारण शिक्षा का अर्थ ज्ञान न होकर मानसिक रूप से गुलाम होने की प्रवृति हो गई | शिक्षा पद्धति इस तरह से बनाई गई कि भारतीयों को भारतीय होने पर शर्मिंदगी लगे और यह शर्मिंदगी दिलो-दिमाग पर इस तरह बैठ जाए कि पूरे जीवन भारतीय होने पर गर्व न कर सके |
आज शिक्षित वर्गों को आप देखे तो पायेंगे कि वे एक अच्छे नस्ल के गुलाम हैं न कि जागरूक भारतीय | वे शिक्षित होते हैं नौकर बनने के लिए और नौकरी करते हुए मर जाते हैं | भ्रष्टाचार व शोषण के लिए औरतों की तरह गाल बजाने और सरकार व प्रशासन को दोष देने में जीवन बिता देते हैं लेकिन स्वयं कभी कोई साहस नहीं कर पाते | कभी वे अंग्रेजों के पेंट पकड़ते हैं तो कभी किसी नेता की धोती | लेकिन कभी नहीं कोशिश करते कि स्वयं पर विश्वास करके देश के लिए कुछ करने के लिए आगे आयें | -विशुद्ध चैतन्य
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