Don’t aim for success if you want it; just do what you love and believe in, and it will come naturally. यदि आप सफलता चाहते हैं तो इसे अपना लक्ष्य ना बनाइये, सिर्फ वो करिए जो करना आपको अच्छा लगता है और जिसमे आपको विश्वास है, और खुद-बखुद आपको सफलता मिलेगी. David Frost डेविड फ्रोस्ट

Indian Educationऋषियों ने ज्ञान प्राप्त किया और ब्राम्हणों को सौंपा | ब्राम्हणों ने कुछ विशेष वर्णों तक ज्ञान को सीमित रखा | लेकिन तब तक शिक्षा अपनी विशिष्टता व गरिमा बनाए हुए था | तब कृष्ण, अर्जुन, कर्ण, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अशोक जैसे लोग निकले | हाँ तब भी कुछ लोगों को शिक्षा से केवल इसलिए वंचित रखा गया, क्योंकि उन्हें गुलाम ही रखना था |

समय के साथ शिक्षा का रूप बदला और पंडितों ने ज्ञान की जगह रटन्त विद्धा को महत्व दिया | लोगों ने शास्त्र रट लिए पर ज्ञान प्राप्त नहीं किया | युद्ध कौशल शास्त्रों में ही धरा रह गया और लोग रामलीला देख कर पराक्रमी बनने लगे | परिणाम हुआ कि अर्जुन और कर्ण, अशोक या चन्द्रगुप्त फिर नहीं आये और विदेशियों के हम गुलाम बन गए | कारण था आत्मज्ञान की परिभाषा स्वयं के ज्ञान से बदल कर आत्मा का ज्ञान कर दिया जाना | स्वयं की क्षमताओं और योग्यताओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करना नास्तिकता की श्रेणी में आ जाना | जो कि पहले गुरुकुल में गुरु स्वतः ही यह ध्यान रखते थे कि कौन किस विषय में अच्छा प्रदर्शन करेगा और उसे उसी विषय में ज्यादा श्रम करने के लिए कहते थे | जैसे पाण्डव में सभी धनुर्धर नहीं थे और सभी गदाधर नहीं थे जबकि सभी ने शिक्षा एक ही गुरु से प्राप्त किया था | सभी शास्त्रों में पारंगत थे लेकिन युधिष्ठर को ही धर्मराज की उपाधि दी जाती रही | लेकिन किसी को किसी से कम करके नहीं आँका जाता था और है |

विदेशियों ने शिक्षा को सुलभ बना दिया लेकिन भारतीय चाणक्य या चन्द्रगुप्त नहीं बने, टॉम और टौमी बन गए | भारतीय से इन्डियन बन गए | गौरवशाली भारतीय न बनकर अंग्रेजों के गुलाम बन गए | संस्कृत और हिंदी बोलने में शर्मिंदा और अंग्रेजी बोलने मैं गौरान्वित होने लगे | भारतीय संस्कृति घर की चारदीवारी पर कैद हो गई और उछ्ख्रिन्लता और छिछोरापन सड़कों पर निकल आया | लड़कियों को कपड़ों से घृणा होने लगी और फैशन के नाम पर कपडे उतारने लगीं | कारण शिक्षा का अर्थ ज्ञान न होकर मानसिक रूप से गुलाम होने की प्रवृति हो गई | शिक्षा पद्धति इस तरह से बनाई गई कि भारतीयों को भारतीय होने पर शर्मिंदगी लगे और यह शर्मिंदगी दिलो-दिमाग पर इस तरह बैठ जाए कि पूरे जीवन भारतीय होने पर गर्व न कर सके |

आज शिक्षित वर्गों को आप देखे तो पायेंगे कि वे एक अच्छे नस्ल के गुलाम हैं न कि जागरूक भारतीय | वे शिक्षित होते हैं नौकर बनने के लिए और नौकरी करते हुए मर जाते हैं | भ्रष्टाचार व शोषण के लिए औरतों की तरह गाल बजाने और सरकार व प्रशासन को दोष देने में जीवन बिता देते हैं लेकिन स्वयं कभी कोई साहस नहीं कर पाते | कभी वे अंग्रेजों के पेंट पकड़ते हैं तो कभी किसी नेता की धोती | लेकिन कभी नहीं कोशिश करते कि स्वयं पर विश्वास करके देश के लिए कुछ करने के लिए आगे आयें | -विशुद्ध चैतन्य

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